उत्तर प्रदेशलखनऊ

मेदांता अस्पताल लखनऊ में 12 साल की बच्ची का सफल एलोजेनिक हेप्लो-आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट

मेदांता अस्पताल लखनऊ में 12 साल की बच्ची का सफल एलोजेनिक हेप्लो-आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट

– बच्ची एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (AML) से पीड़ित थी
– मेदांता अस्पताल लखनऊ मध्य और पूर्वी यूपी में इस प्रकार का बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने वाला पहला प्राइवेटअस्पताल बना

लखनऊ, 23 सितंबर, 2022:मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ ने एलोजेनिक हेप्लो-आइडेंटिकल (हाफ-एचएलए मैच्ड) बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया। एक 12 साल का बच्ची जो किएक्यूटमाइलॉयडल्यूकेमिया(AML) से पीड़ित थी जो एक प्रकार का जानलेवा ब्लड कैंसर होता है। मेदांता अस्पताल मध्य और पूर्वी यूपी में इस दुर्लभ उपलब्धि को प्राप्त करने वाला पहला प्राइवेटअस्पताल बन गया है।मेदांताअस्पताल के हेमटोलॉजी, हेमेटो ऑन्कोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. अन्शुल गुप्ता के नेतृत्व में टीम में हेमटोलॉजी, हेमेटो ऑन्कोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के कंसल्टेंट डॉ.दीपांकर भट्टाचार्य,ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक के सीनियर कंसल्टेंट एवं हेडडॉ. आशीष तिवारी, क्रिटिकल केयर मेडिसिन के निदेशक डॉ. दिलीप दुबेऔर पैथोलॉजी और प्रयोगशाला चिकित्सा विभाग की निदेशक डॉ. मधुमती गोयल शामिल रहीं।

बच्ची की स्थिति के बारे में और अधिक बताते हुए, डॉ. अंशुल गुप्ता ने बताया कि वो यूपी के इलाहाबाद की रहने वाली है। वो बुखार, शरीर में दर्द, एनीमिया की शिकायत के साथ 3 महीने पहले हमारे पास आयी थी। अस्पताल में हुई जांच में पाया कि वो एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) से ग्रसित थी। उसे शुरू में 2 बार कीमोथेरेपी दी गई जो बीमारी के नियंत्रण में लाने के लिए दी थी। इसके बाद हेप्लो-आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रोसीजर किया गया। ट्रांसप्लांट के लिए उसके पिता से हाफ एचएलए(HLA) दिया गया क्योंकि डॉक्टरों को उसके लिए पूरी तरह से मैच्ड डोनर नहीं मिला।आमतौर पर एचएलए मैच्ड सिबलिंग डोनर्स एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए पहली पसंद होती है। हालांकि मैच्ड एचएलए डोनर केवल 30% रोगियों के लिए ही उपलब्ध हैं। 70 प्रतिशत रोगियों को विकल्प दाताओं का सहारा लेना पड़ता है, जिनमें डोनर पंजीकरण या हेप्लो-मैच्ड डोनर के माध्यम से अनरिलेटेड डोनर (MUD) शामिल हैं।

वहीं डॉ. दिलीप दुबे ने बताया कि यह एक एचएलए हाफ मैच्ड ट्रांसप्लांट था। गंभीर न्यूट्रोपेनिया की 3 सप्ताह की लंबी अवधि और बहुत कम वाइट ब्लड सेल्स काउंट थी। प्रोसीजर के दौरान बच्ची को विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया एचईपीए(HEPA)फिल्टर रूम में रखा गया था। सफलतापूर्वक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के 15 दिन के बाद ब्लड काउंट रिकवर हो गया और अब बच्ची अच्छी है। ”
मेदांता अस्पताल लखनऊ में बीएमटी (बोन मैरो ट्रांसप्लांट) सेवाओं की दक्षता के साथ विभिन्न रक्त कैंसर जैसे थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया आदि का भी इलाज भी सफलता पूर्वक किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button