उत्तर प्रदेशलखनऊ

विश्व के तीस प्रतिशत टी बी मरीज भारत में:- डॉ ए. के. सिंह

लखनऊ.24 मार्च- टी.बी. एक संक्रामक रोग है और अगर इसका उपचार शुरूआत में ही नहीं किया गया तो ये जानलेवा भी हो सकता है। यह एक ऐसा रोग हैं जो व्यक्ति को धीरे-धीरे मारता है। टी.बी. रोग को अन्य कई नाम से भी जाना जाता है जैसे तपेदिक, क्षय रोग तथा यक्ष्मा। दुनिया में छह-सात करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं और प्रत्येक वर्ष 25 से 30 लाख लोगों की इससे मौत हो जाती है। देश में हर तीन मनट में दो मरीज क्षयरोग के कारण दम तोड़ दे‍ते हैं। हर दिन चालीस हजार लोगों को इसका संक्रमण हो जाता है।

अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के चेस्ट विशेषज्ञ डॉ ए. के. सिंह ने बताया कि टी.बी. रोग एक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है। इसे फेफड़ों का रोग माना जाता है, लेकिन यह फेफड़ों से रक्त प्रवाह के साथ शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है, ये रोग हड्डियाँ, हड्डियों के जोड़, लिम्फ ग्रंथियां, आंत, मूत्र व प्रजनन तंत्र के अंग, त्वचा और मस्तिष्क के ऊपर की झिल्ली आदि। टी.बी. के बैक्टीरिया सांस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं। किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं।

डॉ ए. के. सिंह ने कहा कि यदि किसी को भी भूख न लगती हो या कम लगती है अचानक से शरीर का वजन कम होने लगे , खाँसी ज्यादा समय से हो, घुटने में दर्द-मोड़ने में परेशानी हो,बेचैनी एवं सुस्ती छाई रहना, सीने में दर्द का एहसास हो थकावट रात में पसीना आये तो उसे तत्काल बिना कोई देर किये चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये क्योंकि टीबी रोग में शुरूआती दौर में कारगर इलाज हो जाये तो काफी ठीक रहता है।

टीबी रोग से प्रभावित अंगों में छोटी-छोटी गांठ अर्थात्‌ टयुबरकल्स बन जाते हैं। उपचार न होने पर धीरे-धीरे प्रभावित अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और यही मृत्यु का कारण हो सकता है। भारत में हर साल 20 लाख लोग टीबी की चपेट में आते हैं लगभग 5 लाख प्रतिवर्ष मर जाते हैं। भारत में टीबी के मरीजों की संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है। यदि एक औसत निकालें तो दुनिया के 30 प्रतिशत टीबी रोगी भारत में पाए जाते हैं।
डॉ ए. के. सिंह ने बताया कि टी.बी. रोग मुख्यत अपर्याप्त व पौष्टिकता से कम भोजन, कम जगह में बहुत लोगों का रहना, स्वच्छता का अभाव तथा गाय का कच्चा दूध पीना आदि हैं से होता है। टी.बी. के मरीज द्वारा यहां-वहां थूक देने से इसके विषाणु उड़कर स्वस्थ व्यक्ति पर आक्रमण कर देते हैं। मदिरापान तथा धूम्रपान करने से भी इस रोग की चपेट में आया जा सकता है। साथ ही स्लेट फेक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को भी इसका खतरा रहता है।

टीबी के संक्रमण से फेफड़ों में छोटे-छोटे घाव बन जाते हैं। यह एक्स-रे द्वारा जाना जा सकता है, घाव होने की अवस्था के सिम्टम्स हल्के नजर आते हैं। इस रोग की खास बात यह है कि ज्यादातर व्यक्तियों में इसके लक्षण उत्पन्न नहीं होते।

टी.बी. के उपचार की शुरुआत सीने का एक्स-रे लेकर तथा थूक या बलगम की लेबोरेटरी जांच कर की जाती है। आजकल टी.बी. के उपचार के लिए अलग-अलग एंटीट्यूबरक्यूलर दवाओं का एक साथ प्रयोग किया जाता है। यह उपचार लगातार 6 से 18 महीने तक चलता है। इस रोग की दवा लेने में अनियमितता बरतने पर, इसके बैक्टीरिया में दवाई के प्रति प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न हो जाती है। बच्चों को टी.बी. से बचाने के लिए बी.सी.जी. का टीका जन्म के तुरंत बाद लगाया जाता है। डॉ ए. के. सिंह ने जानकारी दी कि क्षयरोग प्रमुखतः 15-60 वर्ष की आयु में होता है।

एड्स के बाद सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी विश्व में हर सेकंड एक व्यक्ति क्षयरोग के शिकंजे में फंस रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की कुल आबादी में से एक तिहाई सुषुप्त क्षयरोग के संक्रमण की चपेट में है। 24 मार्च विश्वभर में क्षयरोग दिवस के रूप में मनाया जाता है। एचआईवी एड्स के बाद संक्रमित रोंगों में क्षय रोग सबसे ज्यादा जानलेवा रोग है

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button