पॉलीथिन पर पूर्णतः पाबन्दी ??
सुन के हंसी भी आती है और गुस्सा भी, है न ??
इस कानून के तहत किस पॉलीथिन को हटाया जाएगा ?
कुरकुरे की पैकिंग बदली जाएगी या अंकल चिप्स की? या किसी और बड़ी कम्पनी की ?? जैसे अमूल , कैडबरी, पारले, ब्रिटनिया ??
हिन्दुस्तान लिवर लि.के शैम्पू, सोप, बिस्किट के प्लास्टिक रैपर चलने देंगे और गरीब तार से घासनी बनाके पैकिंग ना करे कुछ दाल में काला जरूर है।।
जी नही …..😡 ये तो सिर्फ आम दुकानदार या गरीब रेहड़ी वाले ही पिसेंगे इस सरकारी चक्की में।
इस नियम को लागू करने से पहले कोई वैकल्पिक साधन नही सुझाया गया।
कैसे कोई समोसे लेने गया व्यक्ति सब्जी या चटनी कपड़े के थैले में डाल के घर लाएगा ??
ऑफिस से घर आता व्यक्ति दही को क्या अपनी जेब में डाल के लाएगा?
कहने का तात्पर्य ये है की इस पाबन्दी से सिर्फ़ घरेलू दुकानदारों की तबाही होगी। हलवाईयों का सबसे ज़्यादा नुकसान होगा। गृह उद्योग बंद हो जाएंगे। पापड़, चकली, फरसाण बनाने वाले क्या करेंगे ? क्योंकी हल्दीराम, बालाजी को पैकिग पे तो कोई बंदी नही
घर घर बनने वाली मोमबत्ती, अगरबत्ती, पत्रावली, कपास की बाती, मसाले, अब पैकिंग के लिये क्या यूज़ करें? सरकार कुछ पर्याय दे तो बात बने।
मोजे, टी शर्ट, ड्रेसेस, ड्रेस मटीरियल, गारमेंट, रुमाल, साड़ियाँ, धूल-मिट्टी और बरसात से बचाने हेतु किस में पैकिग करायें ??
बड़े शहर में ठीक है,, पर घर की छत जब बरसात में पानी टपकाए तो ग़रीब क्या करें ?
बेकरी प्रोडक्ट्स- याने ब्रेड, खारी, टोस्ट, बिस्किट, पाव बेकरी वाले क्या करें?
विदेशी पिज़्ज़ा और बर्गर के साथ तो सॉस के पाउच दे दिए जाएंगे पॉलीथिन के (जिन पे कोई पाबन्दी नही)
लेकिन वह दुकानदार जिसने खुद की बनाई हुई सब्जी या चटनी बेचनी है वो क्या करेगा??
अमूल का दही भी पैक में मक्खन भी और घी भी, सब पॉली पैक में आते हैं फिर ग्राहक तो अपनी सुविधा को देखते हुए लोकल सामान खरीदेगा ही नहीं।
इस पर फिर से विचार होना जरूरी है।
या तो इसे पूरी तरह से लागू करो चाहे नुक्कड़ की हलवाई की दुकान हो या मल्टीनेशनल कम्पनी पॉलीथिन पर पाबन्दी मतलब पूरी पाबन्दी
अपने शहर के आम व्यापारियों को बचाने के लिए उन्हें समर्थन दिजिये।।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक – अतुल दूबे