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प्यार के इज़हार से दुश्मनी
वुसअतउल्लाह ख़ान
हर जनवरी में कोई न कोई मौलाना, कोई जोशीला कर्मचारी, जज या नेता याद दिला ही देता है कि अगले फरवरी की 14 तारीख़ को जो वेलेंटाइन डे आ रहा है, उसका इस्लामिक परंपरा और हमारी पूर्वी संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं।
वर्ष 2016 में उस वक़्त के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने हमें याद दिलाया कि वेलेंटाइन डे गोरे लोगों की ईजाद है और हमें यह दिवस मनाना शोभा नहीं देता। हालांकि, राष्ट्रपति से किसी ने कभी नहीं पूछा कि और ये अगर 14 फरवरी गोरों की ईजाद है तो फरवरी, मार्च, अप्रैल का कैलेंडर किसकी ईजाद है?
इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शौकत अजीज सिद्दकी ने कहा, ख़बरदार जो किसी ने वेलेंटाइन डे मनाया या किसी चैनल पर इसके बारे में कोई बात हुई या कोई इश्तिहार चला। फिर शौकत अजीज सिद्दकी रिटायर हो गए।
मगर अब फ़ैसलाबाद की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने ऐलान कर दिया कि हम 14 फरवरी को यूनिवर्सिटी में वेलेंटाइन डे की जगह बहनों का दिन मनाएंगे और छात्राओं को यूनिवर्सिटी की तरफ से अबा और स्कार्फ का तोहफा दिया जाएगा। इस तरह एक ग़ैर-मुस्लिम दिवस को मुस्लिम दिवस बना दिया जाएगा।
फ़ैसलाबाद यूनिवर्सिटी अपनी शिक्षा और रिसर्च की वजह से शायद किसी को याद न हो, मगर अब हर किसी को याद रहेगी। पाकिस्तान में 20 वर्ष पहले तक किसी ने वेलेंटाइन डे का नाम भी नहीं सुना था। लेकिन जब से उसका प्रमोशन ग़ैर-इस्लामी और बेहयाई के दिवस के तौर पर होना शुरू हुआ तो लोगों को भी इसमें रुचि हुई।
यही पता चला कि जिस दिन गुलाब के फूल किसी की कब्र पर या गले में डालने के लिए भी मार्केट में न मिलें, बड़े-बड़े होटलों के बाहर कुछ नौजवान डंडे उठाए खामखा चक्कर लगा रहे हों और अख़बारों में किसी नामालूम संस्था की तरफ से वेलेंटाइन डे की खराबियों की बारे में विज्ञापन नजऱ आएं तो समझ लो आज 14 फरवरी है। वेलेंटाइन डे की बुराइयों के बारे में कुछ ऐसी ही ख़बरें जनवरी शुरू होते ही भारत और इस्राइल से भी मिलनी शुरू हो जाती हैं, जिससे मेरे मन में शक पैदा होने लगता है कि वेलेंटाइन डे पश्चिम के नंगे कल्चर का प्रतीक हो न हो मगर मुस्लिम, हिंदू, यहूदी अतिवाद की एकता का निशान ज़रूर बन चुका है।