जम्मू के कठुआ में एक बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या और बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में जम्मू बंद ने पूरे देश को झकझोर दिया है. इसी तरह उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक बलात्कार पीड़िता की शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाए उसके पिता की गिरफ्तारी और फिर उसी दौरान उनकी मौत और आरोपी विधायक की गिरफ्तारी में टालमटोल से भी देश की जनमानस गुस्से में है. ये घटनाएं ये बता रही हैं कि बलात्कार की संस्कृति अब भी जिंदा है और देश की हर महिला और बच्चियां असुरक्षित हैं.इसके खिलाफ दिल्ली और देश के कई हिस्सों में महिलाओं ने सोशल मीडिया के जरिए खुद को एकजुट किया, #FightAgainstRape का हैशटैग बनाया और उन्होंने तय किया कि वे इसके खिलाफ एक गैर-राजनीतिक मुहिम चलाएंगी.
इसके तहत कल यानी 14 अप्रैल को शाम 5 बजे गाँधी प्रतिमा जी. पी.ओ. पर एक प्रतिरोध सभा रखी गई है. इसके तहत महिलाएं और पुरुष इकट्ठा होकर अपने गुस्से का इजहार करेंगे और मोमबत्तियां जलाकर जम्मू में मारी गई बच्ची को श्रद्धांजलि देंगे. उसके बाद जी. पी.ओ. से विधानसभा तक एक शांति मार्च मुहँ पर काली पट्टी बाँधकर किया जाएगा..
इस आयोजन को पूरी तरह से अराजनीतिक रखा गया है क्योंकि ऐसी घटनाएं कहीं भी हो सकती हैं और इसे रोकने में पुलिस असफल साबित हुई है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 तक के जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर दिन 54 बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं. दुख की बात यह है कि यह सब निर्भया एक्ट के बावजूद हो रहा है. 2015 के मुकाबले बच्चियों से बलात्कार के मामले में 2016 में 82 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है.
सबसे चिंताजनक बात है कि बलात्कारियों को समर्थन भी मिल रहा है. जम्मू में बच्ची के बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में लोगों के एक हिस्से का सड़क पर उतरना यह दर्शाता है कि समाज बुरी तरह से सड़ रहा है और न्याय की भावना में भारी गिरावट आई है. मौजूदा कार्यक्रम इस नैतिक गिरावट के खिलाफ है.