उत्तर प्रदेशलखनऊ

श्री मद भागवत कथा में आज अंतिम दिन सुदामा चरित्र श्याम नगर कालोनी, अमराई गांव मे सफल पूर्वक अयोजन हुआ

श्री मद भागवत कथा में आज अंतिम दिन सुदामा चरित्र श्याम नगर कालोनी, अमराई गांव मे सफल पूर्वक अयोजन हुआ

लखनऊ : श्री मद भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र का वर्णन हुआ। आयोजन , श्याम नगर कालोनी, अमराई गांव मे कल 12 बजे हवन और उसके बाद भंडारा आयोजित किया जाएगा नवंबर बुधवार 23 नवंबर 2022 को। कथा के ततपश्चात 23 नवंबर आप सभी भक्त गण की उपस्थिति बंदनीय है।
अयोजन के प्रथम दिवस महिलाएं भक्त कलश यात्रा से शुरू हुई।

*जरा सोच करके देखिये, जो बाल श्री कृष्ण सात कोस लम्बे-चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी इक्क्नी अंगुली पर उठा सकते हैं, तो क्या वो एक घड़ा नहीं उठा सकते थे।*
*लेकिन बिना प्रेम रीझे नहीं*
*नटवर नन्द किशोर।*
कोई कितने भी यज्ञ करे, अनुष्ठान करे, कितना भी दान करे, चाहे कितनी भी भक्ति करे, लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लिए प्रेम नहीं होगा,प्रभु श्री कृष्ण मिल नहीं सकते।*

*प्रार्थना नष्ट नहीं होती। उपयुक्त समय पर क्रियान्वित होती हैं।*

*कथा विशेष :*

श्याम नगर कॉलोनी , अमराई गांव लखनऊ में आयोजित सुदामा चरित्र से भागवत कथा का समापन बुधवार को हवन उसके बाद भंडारे से होगा। अंतिम दिन सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। अमृतसर के कथा वाचक हरी शरण अवस्थी द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए। हरी शरण अवस्थी ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लेते हैं।

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