उत्तर प्रदेशलखनऊ

डैडी कूल’ पहल लखनऊ के पिताओं को बदल रही है “कूल डैड” में

डैडी कूल’ पहल लखनऊ के पिताओं को बदल रही है “कूल डैड” में

बच्चों की देखभाल में पिता की ‘पारंपरिक’ भुमिका को बदलने पर जोर

एचसीएल फाउंडेशन व सेसमी वर्कशॉप इंडिया ट्रस्ट की “डैडी कूल” पहल

बच्चों की देखभाल में पिता हर दिन देते हैं 30 मिनट

लखनऊ। नए ज़माने के माता-पिता’ होने की सोच को बढ़ावा देने के लिए, सेसमी वर्कशॉप इंडिया ट्रस्ट ‘पारंपरिक पिता’ की परिभाषा को बदलने की पूरी कोशिश कर रहा है। संस्था लखनऊ के डालीगंज, लव-कुश नगर और विनायकपुरम इलाकों में अपनी अनूठी पहल “डैडी कूल” के माध्यम से यह कार्य कर रही है। यह कार्यक्रम पिताओं को बच्चों की देखभाल में ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करता है। साथ ही, कार्यशालाओं के माध्यम से यह उन पुरानी सोच को चुनौती देता है जहां सिर्फ महिलाओं को बच्चों की देखभाल के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है। इस तरह यह कार्यक्रम बच्चों के बेहतर विकास में पिताओं की भूमिका को बढ़ावा दे रहा है।

कार्यक्रम में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए और उन्हें प्रेरित करने के लिए डालीगंज, लव-कुश नगर और विनायकपुरम में सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम में, सेसमी मपेट एल्मो ने भी बच्चों, पिताओं और समुदाय के साथ संदेश साझा किया कि कैसे पिता घर पर सरल दैनिक गतिविधियों में भाग लेकर अपने बच्चों के ‘दोस्त’ बन सकते हैं। इस कार्यक्रम में नगर निगम के प्रतिनिधियों, आशाओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, बच्चों और उनके माता-पिता के साथ बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित समुदाय के सदस्य शामिल हुए।

इस पहल पर अपने विचार बताते हुए एचसीएल फाउंडेशन की वाइस प्रेसिडेंट ग्लोबल सीएसआर, डॉक्टर निधि पुंडीर ने कहा, “हम ‘डैडी कूल’ पहल के ज़रिए पिताओं को समझाना चाहते हैं कि बच्चों के जीवन में उनकी भागीदारी कितनी ज़रूरी है। पिता के साथ से बच्चों का स्वास्थ्य और पूरा विकास बेहतर होता है। इस पहल के द्वारा हम पिताओं को अपने बच्चों के साथ समय बिताने की खुशी और सकारात्मक तरीके से बच्चों की परवरिश करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।

सेसमी वर्कशॉप इंडिया ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी सोनाली खान ने छोटे बच्चों की शिक्षा के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे पिता अपने बच्चे के जीवन में उनका व्यवहार और दृष्टिकोण को संवारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा, “पिताओं को अपने बच्चों के साथ समय बिताने और उनकी ज़िंदगी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने से, न सिर्फ़ बच्चों से रिश्ते मज़बूत होते हैं बल्कि उनका सामाजिक और भावनात्मक विकास भी बेहतर होता है। इससे छोटी उम्र से ही लैंगिक रूढ़िवादिता (जेंडर स्टीरियोटाइप्स) को खत्म करने में मदद भी मिलती है।”

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