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… किसी की मजाल नहीं जो इनकी पोल खोलें

 

लखनऊ में सीएमएस वाले गांधी और देशभर में बाबा रामदेव के आगे मीडिया के हाथ क्यों बंधे हैं !


सुना है देशभर के कार्पोरेट घरानों के लिए काम करने वाली पीआर कंपनियां गांधी और रामदेव के मीडिया मैनेजमेंट पर रिसर्च कर रही हैं। कई इंस्टीट्यूट मास कम्युनिकेशन के पीआर क्लासेस के लिए रामदेव और गांधी को अतिथि प्रवक्ता के तौर पर आमंत्रित करने पर विचार कर रहे हैं। ताकि इनसे मीडिया मैनेजमेंट के गुण सीखकर बच्चे पत्रकारिता का शोक़ त्यागें और पत्रकारों को उंगलियों पर नचाने का हुनर सीख सकें।

गौरतलब है कि बाबा रामदेव और उनके पतंजलि इंडस्ट्री के खिलाफ आज तक किसी भी मीडिया समूह ने एक भी आलोचनात्मक या नकारात्मक खबर दिखाने/छापने का साहस नहीं किया। जबकि मीडिया के पास समय-समय पर ऐसे मामले, प्रमाण और शिकायतो के मसाले सामने आते रहते हैं जिससे बाबा रामदेव और छोटे बाबा गांधी का सच सामने लाया जा सकता है। लेकिन सबकुछ जानकर भी मीडिया को इनके मामलों में अंजान बना रहना पड़ता है। मजबूरीवश चैनल अपनी ग़िज़ां को त्यागकर इन पर मीडिया ट्रायर नहीं करते।
लेकिन इनपर हाथ रखने से पहले हर मीडिया समूह और उसके पत्रकार को सौ बार सोचना पड़ता हैं। यहां तक कि ब्लैकमेलिंग पर आश्रित पत्रकार या चैनल/अखबार रामदेव या गांधी के बिजनेस ग्रुप को ब्लैकमेलिंग का शिकार नहीं बनाते। क्योंकि सबको इन लोगों की ताकत का अंदाजा है।

पहले बात करते हैं बाबा राम देव और उनके पतंजलि की। योग ब्रांड बनने के बाद बाबा ने पतंजलि इंडस्ट्री शुरू करने से पहले ही देश की सियासत की नब्ज पकड़ी। कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अब रिपीट नही होगी और अगली सरकार भाजपा यानी एनडीए ही बनायेगी। ये तय था। इसलिए बाबा ने एक सशक्त विपक्षी ताकत की तरफ भाजपा के लिये काम किया। कांग्रेस सरकार के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन किये। भ्रष्टाचार और काला धन के विरूद्ध मुखर हुए। कांग्रेस हारी। भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की शक्तिशाली सरकार बनी। और फिर रामदेव सिर्फ योग गुरु नहीं रहे, अघोषित तौर पर वो सरकार का एक शक्तिशाली हिस्सा बन गये। पतंजलि दिन दूनी रात चौगुनी आगे बढ़ती रही। राम
देव को सरकार का पूरा संरक्षण प्राप्त हो गया। भूलवश रामदेव का जरा भी कोई काम रूका नहीं कि वो याद दिलाने लगते कि ये बाबा किसी भी हुकुमत/सियासत पार्टी को किस तरह अर्श और फर्श से आर्श तक ला सकते हैं।
ये बात भी सर्वविदित है कि आज मोदी सरकार की मीडिया पर जितनी पकड़ है शायद आजाद भारत में किसी सरकार की मीडिया पर इतनी पकड़ नहीं थी।
रामदेव की सरकार में जबरदस्त पकड़। और सरकार की मीडिया में महा जबरदस्त पकड़। ऐसे में कौन न्यूज चैनल या अखबार रामदेव के खिलाफ कड़वा सच दिखाने का जोखिम लेगा। ज्यादातर मीडिया समूह सरकारी वर्धस्तव में इशारों की भाषा समझ रहे है। सभी चैनल/अखबार सरकारी विज्ञापनों /अन्य सरकारी सहयोग/लाइसेंस/डीएवीपी को सलामत रखना चाहते है। ब्रांड मीडिया ग्रुपस के शेयर होल्डर्स यानी एक तरह से मालिक खुद उद्योगपति हैं। इसलिए वो नहीं चाहते कि उनके चैनल्स सरकार को नाराज करे।

बाबा रामदेव के आगे हर बड़ा न्यूज चैनल भीगी बिल्ली क्यों बना रहता है? इसका सबसे बड़ा और प्रमुख कारण ये है कि पतंजलि आज न्यूज चैनल्स का सबसे बड़ा विज्ञापन दाता है। आजतक चैनल में पुण्य प्रसून वाजपेयी ने बाबा रामदेव से सख्त सवाल पूछने का साहस किया तो चंद दिनो में चैनल ने प्रसून को विदा कर दिया। एनडीटीवी जैसा चैनल जिसके साथ सरकार की ट्यूनिंग नहीं है। कथित रूप से इसे सरकार विरोधी या निष्पक्ष कहा जाता है। इस चैनल की भी मजाल नहीं कि ये पतंजलि या रामदेव से जुड़े किसी कड़वे सच की खबर दिखा दे। क्योंकि बाबा रामदेव अपनी सोचीसमझी रणनीति के तहत सबसे ज्यादा विज्ञापन एनडीटीवी को देते है। रवीश के प्राइम टाइम को भी पतंजलि ही प्रायोजित करता है।

अब लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल (सीएमएस) के संस्थापक /मालिक जगदीश गांधी जी से मीडिया के सामंजस्य की बात करते हैं।

– सरकार कोई भी हो ये उसके आगे नतमस्तक हो जाते हैं।

– उत्तर प्रदेश की हर दौर की हर सरकार में जगदीश गांधी जी अपनी पंहुच बना ही लेते हैं।

– हर दस बड़े अफसरों में एक दो सीएमएस के पढ़े हुए होते हैं।

-इन कारणों से सीएमएस की किसी शिकायत को टालने की कोशिश होती है।

गांधी के आगे मीडिया क्यो लाचार है, अब इस बात के मुख्य बिन्दुओं पर आते हैं।

1- अधिकतर पत्रकारों/संपादकों के बच्चे सीएमएस में पढ़ते हैं। और इन बच्चों की आधी फीस माफ कर दी जाती है।

2- छोटे बड़े अखबारों में सीएमएस का विज्ञापन मिलता है। चैनलों और अखबारों में गांधी के भाषण /लेख भी पेड होते हैं। इस रूप से भी अखबारों /चैनलों में सीएमएस की एकमुश्त रकम बंधी है।

3- महीने में करीब दस दिन प्रेस कांफ्रेंस के नाम पर सैकड़ों पत्रकार गाड़ियों में लाद-लाद कर लाये जाते हैं। इनकी शानदार दावत होती है। और इन्हें डग्गा यानी गिफ्ट दिया जाता है।

4- बड़े अखबारों के संपादकों की बीवियों या नाते रिश्तेदारों को गांधी जी अपनी किसी ब्रांच में नोकरी भी दे देते हैं।

(आगे और भी है। शेष अगली कड़ी में)
-नवेद शिकोह
9918223245

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