रूदौली के सामाजिक संगठन ने ट्रिपल तलाक आर्डिनेंस को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
रिपोर्ट- अलीम कशिश
लखनऊ। गत 19 सितम्बर को राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश के खिलाफ रूदौली के अखिल भारतीय समाजिक संगठन की तरफ से सैय्यद फारूक़ अहमद अौर मोहम्मद सिद्दीक़ ने संयुक्त रूप से सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर कर इसे रद्द करने की मांग की है।
संगठन के अध्यक्ष फारूक़ अहमद ने बताया की शायरा बानो के प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने एक ही समय में दिये गए तीन तलाक़ को निष्प्रभावी घोषित कर दिया था इसलिये यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अब एक समय में तीन तलाक देता है तो इससे उसके वैवाहिक संबंधों पर कानूनी रूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
लेकिन केन्द्र सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायलय की मंशा के खिलाफ जाकर तीन तलाक़ पर कानून का जो प्रारूप सदन नें प्रस्तुत किया उसमें तलाक देने वाले पति के लिये तीन साल के लिये कारावास का प्रावधान किया था। लेकिन लोकसभा में पास होने के बाद बिल राज्यसभा में पारित नहीं हो सका। ऐसे समय में जब बिल राज्यसभा में लम्बित है कुछ संशोधनों के साथ इसे अध्यादेश के रूप में प्रख्यापित कर कानून बनाना दर्शाता है कि बीजेपी इसका इस्तेमाल किसी का भला करने के बजाये राजनितिक लाभ हासिल करने के लिये कर रही है।
फारूक अहमद ने बताया इन्होने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ पीटिशन अपने अधिवक्ता निखिल जैन, फरहान खान अौर फरहा हाशमी के द्वारा 27 सितम्बर को दाखिल करवाई थी। जिसे कोर्ट ने 4 अक्तूबर को स्वीकार कर लिया है अौर हम आशान्वित है जल्द ही इसपर सुनवाई शुरू हो जायेगी अौर इस संविधान विरोधी अध्यादेश को रद्द कर दिया जायेगा क्योंकि जहां यह एक तरफ कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है।
वहीं दूसरी तरफ इससे संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन भी होगा। क्योंकि जब माननीय न्यायलय द्वारा तीन तलाक को पूर्व में ही शून्य घोषित किया जा चुका है, इससे समाज को या किसी को कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं होता अौर वैवाहिक सम्बन्धों पर भी प्रभाव नहीं पड़ता तो इसे अपराध कैसे बनाया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने न्यायपालिका पर पूर्ण भरोसा जताते हुए इसका रद्द होना निश्चित बताया है।