भेलसर(फैजाबाद)इतिहास गवाह है कि हर मुल्क और ज़माने में ऐसी शक्सियत पैदा होती रही हैं।जो अपनी सलाहियत के बल पर अज़ीम कहलाने के मुस्तहक रही है।ऐसे लोग पैदाइशी तौंर पर अज़ीम होते हैं।यह सलाहियत इंसान के अन्दर खुदादाद होती है और ऐसे लोग अपनी सलाहियत के बल पर किसी एक शख्स को नहीं बल्कि पुरे समाज को फायदा पहुचाते हैं। यह बातें रूदौली में जन्मे मशहूर शख्शियत शायर असरारुल हक़”मजाज़” रुदौलवी के जन्म दिवस के अवसर पर नगर पालिका परिषद रूदौली के हाल में आयोजित एक गोष्ठी के मौके पर समाज सेवी डॉ0 नेहाल रज़ा ने कही।उन्होंने कहा कि उर्दू दुनिया की मशहूर अदबी शक्सियत में मजाज़ रुदौलवी का नाम रौंशन सितारे की हैसियत रखता है। बतादें कि चेयरमैन जब्बार अली ने असरारुल हक़ मजाज़ रुदौलवी के यौमे पैदाइश के मौके पर नगर पालिका परिषद् हाल में एक सेमिनार का आयोजन किया था।जिसमें मेहमाने खूसुसी चौधरी महमूद सुहैल साहब,चेयरमैन जब्बार अली और रुदौली के मशहूर ओ मारूफ शक्सियतों ने शिरकत की जिसमे मजाज़ की ज़िन्दगी के मुख्तलिफ पहलुओं पर रोशनी डाली गयी।
चौधरी महमूद सुहैल ने अपने ख़यालात का इज़हार इस तरह किया–
जो सच पूछो तो शाद अपने किये से कुछ नही होता खुदा की देंन है इन्सान का मशहूर हो जाना। ज़माने के निज़ामे ज़ंग आलूदा से शिकवा है क़वानीने कोहन आईनए फर्सूदा से शिकवा है। मुझे शिकवा नही दुनिया की उन ज़ोहरा जबीनो से जिन्होंने की ना मेरे ज़ौके रुसवा के पज़ीराई समाजसेवी डॉ नेहाल रज़ा ने बताया कि 4 दिसंबर 1955 को मजाज़ संगम होटल अमीनाबाद पर अपने दोस्तों के साथ खड़े थे और शारिब रुदौलवी नूरी होटल पर बैठे हुये थे तब मजाज़ साहब ने शिकायत भरे लहजे में शारिब रुदौलवी से फानी बदायुनी के इस शेर के ज़रिये रुदौली से अपनी वाबस्तगी का इज़हार किया कि फ़ानी हम तो जीते जी वो मय्यत है बे गोरों कफ़न ग़ुरबत जिसको रास न आई और वतन भी छूट गया। चेयरमैन नगर पालिका रुदौली जब्बर अली ने बताया कि मजाज़ का जन्म दिन 19 अक्टूबर 1911 को आज ही के दिन हुवा था मजाज़ ने 44 साल की उम्र पाई और उन्होंने रुदौली के साथ साथ बैरुने मुल्क में भी अपना नाम रोशन किया और कहा कि मजाज़ के नाम से एक गेट और एक आल इण्डिया मुशायरा और एक टूर्नामेंट का आयोजन किया जायेगा। शाहिद सिद्दीकी ने कहा मजाज़ को समझने के लिए उर्दू ज़बान से वाकफियत ज़रूरी है।क्योंकि हमारा असासा उर्दू ज़बान में महफूज़ है।यह ज़िम्मेदारी हम पर आयद होती है कि हम अपने बच्चों को अग्रेज़ी की तालीम के साथ साथ उर्दू की तालीम भी दें।जिससे आने वाली नस्लें मजाज़ जैसी शक्सियत से मुतार्रिफ हो सके और मजाज़ का यह शेर सुनाया कि खुद दिल में रहके आंखों से पर्दा करे कोई हाँ लुत्फ जब है पाके भी ढ़ूडा करे कोई। या तो किसी को जुर्रते दीदारी न हो या फिर मेरी निगाह से देखा करे कोई। शकील रूदौलवी ने अपने शेर के हवाले से कहा कि गली गली में उजालो का हुस्न बांट गया हमारे शहर में एक माहताब ऐसा था। मुजीब रुदौलवी ने शेर पड़ा कि जिसको इंसान कहते हुए डर लगता है। आज कल उसने बड़ी धूम मचा रख्खी है। इस सेमीनार में रुदौली के मोतबर हस्तिया मौजूद रहीं।जिसमें इरफ़ान खां, अब्दुल जब्बार अन्सारी,शाह मसऊद हयात गजाली,अतीक खां, गुलाम मो0अन्सारी,उस्मान अंसारी,हाफिज़ सबाउद्दीन, मालिक अंसार,नसीम प्रिन्स,मोहम्मद शरीफ असलम,इकबाल उस्मानी, जमाल कुरैशी,शकील न्यू कालेज,शाह आमिर,जावेद,अतीक बेकरी,सै0 अली मियां आदि शामिल रहे हैं।