उत्तर प्रदेशलखनऊ

अनियमित जीवनशैली की वजह से किडनी फेलियर के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है–डॉक्टर राजेश अहलावत

विशेष संवाददाता- जितेन्द्र  कुमार  खन्ना

लखनऊ : किडनी की बीमारिओं के बढ़ाने के लिए आज की अनियमित जीवनशैली सबसे ज्यादा जिम्मेवार है. इसकी वजह से किडनी फेल्योर की समस्या लगातार बढ़ रही है। किडनी रोग आज केवल भारत ही नहीं अपितु अधिकांश देशों में बढ़ रहा है. किडनी की बिमारी के बारे में ये बातें मेदान्ता हॉस्पिटल के ग्रुप चेयरमैन डॉ. राजेश अहलावत ने कहीं.

मेदान्ता हॉस्पिटल, गुरुग्राम के ग्रुप चेयरमैन डॉ. राजेश अहलावत और चेयरमैन डॉ. विजय खेर आज राजधानी लखनऊ में थे . मीडिया से बातचीत करते हुए डॉ. अहलावत ने बताया की किडनी फेल्योर के अधिकांश केशों में यदि समय से सजगता बरती जाये तो व्यक्ति इस रोग से बच सकता है . इतना ही नहीं लगभग 25 से ज्यादा वर्षों का अनुभव रखने वाले डॉ.अहलावत ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट कराना अब आसन हो गया है . तकनीकि विकास और नई-नई दवाओं की उपलब्धता ने इसे सरल बना दिया है . वर्तमान समय में मिसमैच किडनी ट्रांसप्लांट से लेकर उम्रदराज लोगों तक में इसका ट्रांसप्लान्टेशन संभव है. इसमें होने वाली जटिलताएँ अब पहले की अपेक्षा बहुत कम हो चुकीं हैं .

डॉ.विजय खेर ने बताया कि हाई ब्लडप्रेशर और लम्बे समय तक अनियमित शुगर किडनी फेल्योर के मुख्य कारण हैं . दर्द निवारक दवाओं का लम्बे समय तक सेवन भी इसका कारण हैं . ऐसे में जिन लोगों के माता-पिता को शुगर की समस्या रही हो और उनको किडनी से सम्बंधित रोग भी रहा हो उनमें इसकी संभावना काफी बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि कई बार ये बीमारियाँ लम्बे समय के बाद ही पता चल पातीं हैं . अत: ऐसे में उसका बचाव और समय से डाक्टरी सलाह ही इसके विकल्प हैं.

ट्रांसप्लांट सस्ता किये जाने के सवाल पर डॉ.खेर ने कहा कि ये हमारे और आपके द्वारा संभव नहीं हैं . इसके लिए सरकार प्रयास में लगी है. दुनिया की सबसे सस्ती दवाएं भारत में ही बनतीं हैं बावजूद इसके अभी ज्यादातर लोग ऐसे इलाज को नहीं करा पाते हैं .

ये हैं बीमारी के लक्षण

शरीर में सूजन, पेशाब की मात्रा में कमी, पेशाब में प्रोटीन या खून आना, जलन होना,बार-बार पेशाब आना, रक्त की कमी, ब्लडप्रेशर बढ़े रहना

ऐसे करें बचाव

शुगर पर नियंत्रण, बीपी पर नियंत्रण, किडनी को नुकसान पहुचाने वाली दवाओं का सेवन न करें, दर्द निवारक दवाओं के सेवन से बचें

ये हैं विकल्प

हीमोडायलिसिस, पेरिटोनियल डायलिसिस, किडनी ट्रांसप्लांट

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