आज की राजनीति जाति वादिता से ग्रसित ?
समझ मे नही आ रहा है कि आगे क्या होगा वोटों के चक्कर मे राजनीतिक पार्टियां सत्ता पाने के बाद पुराने वादों को भूल नया फार्मूला आजमाते हैं जो लाभदायक कम हानिकारक ज्यादा हो जाता है कास नेताओं की सत्ता से चिपके रहने वाली सोच बदलती और हमारे देश की महान जनता एकजुट होकर अपनी सोच बदलती कि किसी राजनीतिक पार्टी मे स्थाई रुप से बंध कर नही बल्कि अस्थाई रुप से समर्थन करते तो बडा मजा आता और देश सुधरता।
आज जरुरत यह है कि जो पार्टी एक बार सत्ता मे आ जाये उसे पांच साल तक सत्ता से दूर रखा जाय और यह कार्य देश की जनता ही कर सकती है बिहार कई वर्षों तक लालू यादव जी का गुलाम बना रहा तो वर्षों बाद उनका भ्रष्टाचार उजागर हुआ और उनका राजनीतिक कैरियर चौपट हुआ।
जरुरत भी यही थी।पंजाब मे बढिया रहा कि एक चांस कांग्रेस को मिलता था तो दूसरी अकाली दल को दिया जाता है।वही हाल उत्तर प्रदेश मे भी लगातार तीन बिधान सभा चुनावों से हो रहा एक बार बसपा को दूसरी बार सपा को और तीसरी बार भाजपा को जनता की कमान सौंपा चाहिये भी यही।
केन्द्र मे दस वर्ष कांग्रेस नीति की माननीय मनमोहन सिंह के नेतृत्व सरकार रही तो इस बार पांच वर्षों के लिये बीजेपी के हाथों मे देश की बागडोर सौपा यदि प्रति पांच वर्षों बाद जनमानस फैसला ले तो राजनीतिक पार्टियों को सोचना पडेगा की यदि मैने देश हित व समाज हित मे सही कार्य नही किया तो जनता पुनः पैदल कर देगी जनमानस को राज नेताओं के मन मे यह भय उत्पन्न करना आवश्यक है ताकि ये माननीय जन मनमानी न करें।
आज अरक्षण व एस सी एस टी कानून को लेकर एक तबके मे खुशी है तो दूसरे लोगों मे क्रोध व मायूसी है जो देश हित मे नही है।सरकार जो अलग बिरादरी को अलग कानून अलग आरक्षण दे रही है ये गलत है।आज यदि गहराई से देखा जाय तो न किसी को आरक्षण की जरुरत है न अलग कानून की जरुरत है जरुरत देश व समाज को एकजुट रखने की है।
वर्ना देश मे फूट पैदा होगी अब सोचना देश वासियों को है कि हम एक ऐसी राजनीतिक पार्टी का चुनाव करें जिसकी सोच सर्व हित मे हो।हमे जाति पांति से हटकर रहना होगा।नही चाहिये जाति धर्म का आरक्षण नही चाहिये हमे अलग अलग नियम कानून हमे हमारा प्यारा देश भारत चाहिये।वोटों की राजनीत करने वाले सत्ता लोभी नेताओं को बहुत दूर करना चाहिये।