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गर्मी का मौसम कार्डियोवैस्कुलर मरीजों में मौत के खतरे को बढ़ा सकता है

गर्मी का मौसम कार्डियोवैस्कुलर मरीजों में मौत के खतरे को बढ़ा सकता है

कानपुर , 10 जून 2023 : गर्म मौसम में शरीर को अपने कोर (मुख्य) तापमान को सामान्य स्तर पर बनाए रखने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इस वजह से हृदय, फेफड़े और किडनी पर ज्यादा दबाव पड़ता है। रीजेंसी सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल, कानपुर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अभिनीत गुप्ता के अनुसार, अगर आपको ह्रदय से सम्बंधित कोई बीमारी है तो आपको गर्मी के मौसम में ज्यादा खतरा हो सकता है। इसलिए गर्मी या गर्म मौसम में ठंडा और हाइड्रेटेड रहना बहुत जरूरी हो जाता है। दरअसल कई अध्ययनों में पाया गया है कि ज्यादा तापमान से हृदय के मरीजों में मृत्यु दर बढ़ती है।
हृदय की बीमारी दुनिया भर में होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, कार्डियोवैस्कुलर (हृदय रोग) (सीवीडी) से होने वाली वैश्विक स्तर पर मौतें (दुनिया भर में मौत का प्रमुख कारण) 1990 में 12.1 मिलियन से 60% बढ़कर 2021 में 20.5 मिलियन हो गई। नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज (NSD) जैसी हृदय की बीमारियाँ भी भारत में एक बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है। हाल ही में सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि देश में नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों के कारण होने वाली मौतों का अनुपात कम से कम 63% तक बढ़ गया है।
बहुत ज्यादा गर्म और बहुत ज्यादा ठंडे तापमान से हृदय संबंधी मौत का खतरा, इस्केमिक हृदय बीमारी, स्ट्रोक और हार्ट फेलियर का ज्यादा खतरा होता है। एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि उम्र के 60वें दशक में पुरुषों को सामान्य गर्मी की तुलना में ज्यादा गर्म मौसम होने पर कार्डियोवैस्कुलर बीमारी से मरने का ज्यादा खतरा होता है।
डॉ अभिनीत गुप्ता ने गर्मी का ह्रदय के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “यह समझना बहुत ही जरूरी है कि हृदय तापमान बहुत ज्यादा होने पर कैसे प्रतिक्रिया करता है। अत्यधिक गर्म दिनों में हृदय प्रमुख अंगों से रक्त को त्वचा के नीचे शिफ्ट करता है, जहां यह ठंडा होता है। इस दौरान पसीना भी आता है और इससे खून की मात्रा में कमी हो जाती है जिससे हृदय गति बढ़ जाती है। शरीर का मुख्य तापमान बढ़ने से मेटाबोलिक स्टेट (अवस्था) और ऑक्सीजन की खपत भी बढ़ती है। इस दौरान आपको फ्लूइड शिफ्ट्स (द्रव परिवर्तन) और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन (विशेष रूप से पोटेशियम और मैग्नीशियम) का भी अनुभव हो सकता है। इन सभी फैक्टर के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारी से पीड़ित मरीजों में मौत होने का खतरा बढ़ जाता है।”
गर्मी के संपर्क में आने पर मध्य-आयु वर्ग से लेकर वृद्ध-आयु वर्ग की आबादी आमतौर पर इंट्रावस्कुलर कमी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती है। इसलिए अत्यधिक गर्मी से बचने और जितना हो सके धूप में बाहर जाने से बचने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा जिन लोगों को कोई बीमारी है उन्हें पानी ज्यादा पीना चाहिए और जितना हो सके धूम्रपान और शराब से बचना चाहिए।
बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर, बढ़ा हुआ ब्लड लिपिड, बढ़ा हुआ ब्लड शुगर, बढ़ा हुआ ग्लूकोज और ज्यादा वजन और मोटापा आदि ह्रदय की बीमारियों को जन्म देने के प्रमुख कारण हैं। कार्डियोवैस्कुलर से जुड़े खतरे को बढ़ाने वाले अन्य फैक्टर में तम्बाकू का सेवन, शराब और ज्यादा नमक का सेवन शामिल है। हृदय बीमारियों के सबसे आम लक्षणों में सांस में तकलीफ, छाती में दर्द, दिल की धड़कन आसामान्य होना और थकान होना आदि शामिल हैं।

हार्ट अटैक के दौरान पीड़ित व्यक्ति को चेहरे, हाथ, या पैर में सुन्नता का अनुभव होता है, विशेष रूप से यह सुन्नता शरीर के एक तरफ होती है, इसके अलावा भ्रम, चक्कर आना, बात न कर पाना और बिना किसी ज्ञात कारण के गंभीर सिरदर्द होना आदि भी हार्ट अटैक के दौरान हो सकता है।
रिसर्च के अनुसार, पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन बढ़ता जा रहा है इस वजह से गर्मी ज्यादा बढ़ रही है और लोग हीट वेब की चपेट में आ रहे हैं। मानव द्वारा कोयले, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने के कारण ज्यादा जलवायु परिवर्तन होता है। हाल ही में कई रिसर्चर ने इस बात पर अध्ययन किया कि जलवायु परिवर्तन से हृदय का स्वास्थ्य किस तरह से प्रभावित होता है।
यह कहा जा सकता है कि अत्यधिक गर्म और अत्यधिक ठंडे तापमान दोनों कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (CVD) जैसे कि इस्केमिक हृदय बीमारी, स्ट्रोक, हार्ट फेलियर और अर्ढ़य्थ्मिया (अतालता) वाले व्यक्तियों में मृत्यु के जोखिम को बढ़ाते हैं।

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