नीति आयोग और प्लान इंडिया स्वास्थ्य और पोषण के लिये मिलकर करेंगे काम

पांच राज्यों के सात जिलों में कार्य करने के लिये हुआ मिलाया हाथ
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर सहित पांच राज्यों के सात जिलों में स्वास्थ्य एवं पोषण सूचकों को मजबूत बनाने की दिशा में नीति आयोग और प्लान इण्डिया मिलकर कार्य करेंगे। इस कार्य को शुरू करने के लिये केन्द्र सरकार के नीति आयोग और प्लान इण्डिया ने आज समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते के तहत सात महत्वाकांक्षी जिलों उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर, उत्तराखंड के हरिद्वार, झारखंड के हजारीबाग, पश्चिमी सिंहभूमि व खूँटी, राजस्थान के करौली और बिहार के मुजफ्फरपुर में स्वास्थ्य एवं पोषण सूचकों मजबूत बनाना है। इससे पहले भारत सरकार के नीति आयोग के उप-महानिदेशक (इवैल्युएशन), श्री राकेश रंजन और प्लान इंडिया की कार्यकारी निदेशक, सुश्री भाग्यश्री देंगले ने इस आशय-पत्र पर हस्ताक्षर किया। इस अवसर पर, नीति आयोग के सीईओ, श्री अमिताभ कांत, प्लान इंडिया गवर्निंग बॉडी की चेयरपर्सन, सुश्री रति विनय झा और प्लान इंडिया टीम के वरिष्ठ सदस्य मौजूद थे। श्री अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग ने कहा, “महत्वाकांक्षी जिलों में सरकारी प्रयासों को मज़बूत बनाने के लिए विकास सहयोगियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। इनके साथ बेहतर जानकारी और व्यवहारिक सहायता प्रदान की जा सकेगी। अलग-अलग क्षेत्रों की क्षमताओं का तालमेल, बेहतर प्रशासनिक कुशलता और प्रमाण-आधारित नीतियां ही महत्वाकांक्षी जिलों के कार्यक्रम की पहचान हैं। प्लान इंडिया, मानव विकास सूचकांक रैंकिंग और स्थायी विकास लक्ष्यों में उभरते भारत के अग्रणी जिलों में संपूर्ण परिवर्तन लाने हेतु नीति आयोग के प्रयासों का समर्थन कर रहा है। इसलिए वर्ष 2020 तक, प्लान इंडिया ने इस आशय-पत्र के तहत तकनीकी एवं विषयक सहायता प्रदान करने, विभिन्न साझेधारों की क्षमता निर्माण करने एवं उनका आकलन करने, जिला-स्तरीय कार्य योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी में सहायता करने और समस्या-आधारित शोध करने में नागरिक समाज को जोड़ने में मदद करने का वचन दिया है। इस साझेदारी पर टिप्पणी करते हुए, प्लान इंडिया की कार्यकारी निदेशक, सुश्री भाग्यश्री देंगले ने कहा, “प्लान इंडिया बाल अधिकारों के लिए एक समर्पित संगठन है, जो बच्चों विशेषकर लड़कियों के समग्र विकास हेतु प्रतिबद्ध है। हमारे लिए यह साझेदारी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हम अपने तकनीकी अनुभव तथा श्रेष्ठ पद्धतियों को साझा करते हुए राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकते हैं। इसके साथ ही पिछले 40 वर्षों के दौरान निर्मित जेंडर ट्रांसफॉर्मेटिव प्रक्रियाएं भी इसके लिए मददगार साबित होंगी।