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अपोलोमेडिक्स ने बचाई मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम जैसी दुर्लभ और घातक बीमारी से बच्चे की जान

अपोलोमेडिक्स ने बचाई मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम जैसी दुर्लभ और घातक बीमारी से बच्चे की जान

लखनऊ, 27 जुलाई 2021: राजधानी स्थित अपोलोमेडिक्स अस्पताल ने आधुनिक तकनीक और टीमवर्क से असाध्य से लगने वाले रोग मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम से एक ,मासूम की जान बचाने में सफलता पाई है। मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है, `जिसके लक्षण कोविड के संक्रमण के 2-8 हफ्ते बाद नजर आने शुरू होते हैं। यदि इन लक्षणों को समय से न पकड़ा जाए तो बीमारी घातक भी हो सकती है। ऐसे ही एक बच्चे अक्षत में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम नजर आए और उसके माता-पिता स्वयं डॉक्टर होते हुए भी अपने आपको असहाय पा रहे थे। आखिरकार उन्होंने अपोलोमेडिक्स में अक्षत को एडमिट कराया जहां डॉक्टर्स की टीम ने सफलता पूर्वक इलाज करते हुए उसे नया जीवन दान दिया।

अपोलोमेडिक्स के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ निरंजन सिंह ने बताया, “जब अक्षत अपोलोमेडिक्स लाए गए तो इनको पिछले चार दिन से तेज बुखार था और दवाएं भी काम नहीं कर रही थीं। उन्हें लगतार दस्त हो रही थी, पूरे शरीर पर दाने हो चुके थे और कंजक्टिवाइटिस की वजह से आँखें लाल हो चुकी थीं। जांच और पूछताछ से पता चला कि फॅमिली में कई सदस्यों को लगभग एक महीना पहले कोविड हो चुका था। गहन जांच के बाद पता चला कि अक्षत को मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएससी) हुआ है। यह एक रेयर डिजीज है लेकिन है बहुत घातक। भर्ती होने के बाद सभी संभव इलाज के बाद भी अक्षत की हालत बिगड़ती गई। अक्षत को हमने वेंटिलेटर पर रखा और जब उसकी सांस और अन्य पैरामीटर्स नार्मल होने लगे तो उसे वेंटिलेटर से हटा लिया गया। मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम की जो इंटरनेशनल गाइडलाइन्स हैं, उन्ही का पालन करते हुए अक्षत का इलाज किया गया।

अपोलोमेडिक्स अस्पताल के सीईओ और एमडी डॉ मयंक सोमानी ने बताया, “5 वर्षीय – अक्षत श्रीवास्तव को कोविड के बाद अत्यधिक तेज बुख़ार, दस्त और बदन पर छाले हो गए थे। अक्षत के माता-पिता स्वयं डॉक्टर हैं लेकिन वे भी बच्चे की हालत देखकर बुरी तह से निराश हो चुके थे। वे अक्षत को अपोलोमेडिक्स अस्पताल लाए, जहां बाल रोग विशेषज्ञ – डॉ. निरंजन सिंह ने पाया की उसे MISC – एक बहुत ही घातक बीमारी थी। अनेक उतार-चढ़ाव तथा विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों की टीमवर्क से अंततः अक्षत का सफल इलाज हुआ और बच्चा अब स्वस्थ है। यह केस अपने आप मे उदाहरण है कि अपोलोमेडिक्स किसी भी मरीज के इलाज के लिए किस तरह टीम स्पिरिट से काम करता है और मरीज के जीवन की रक्षा को सर्वोच्च ध्येय मानकर अपने दायित्व का पूर्णत निर्वहन करता है। मुझे अपनी टीम पर गर्व है। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे हर पेशेंट के इलाज के लिए, इसी तत्परता और लगन से अपने कर्तव्य को अंजाम देंगे।”

वेंटिलेटर से हटाते ही अक्षत के हार्ट में दिक्कत आने लगी, तो डॉ निरंजन सिंह, डॉ करण कौशिक और डॉ अनुपम वाख्लू की टीम ने एक बार फिर अक्षत को वेंटिलेटर पर डालने का फैसला किया। फैसला लिया गया कि 4-5 दिन अक्षत को वेंटिलेटर पर रखकर देखा जाएगा. एक वक़्त ऐसा भी आया कि अक्षत के माता-पिता भी हौसला हारने लगे थे, लेकिन दाद देनी होगी अपोलोमेडिक्स में अक्षत का इलाज करने वाले डॉक्टर्स की जिन्होंने न तो खुद हौसला हारा न अक्षत के माता-पिता को नाउम्मीद होने दिया।

अपोलोमेडिक्स की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ प्रांजलि सक्सेना के मुताबिक़ यह कोविड होने के बाद बच्चों में होने वाली बीमारी है, जिसके लक्षण 2 से 8 हफ्ते बाद ही नजर आने शुरू होते हैं। अक्षत को जब आईसीयू में एडमिट किया गया तो उसनके सभी पैरामीटर्स काफी चिंताजनक थे। यह अपोलोमेडिक्स के हर डिपार्टमेंट का सहयोग था जो बाल रोग विशेषज्ञों को पूरी तरह मिला जिसकी वजह से हम अक्षत को हुई इस घातक बीमारी से बाहर निकाल पाए और आज वह स्वस्थ जीवन जी रहा है।

अक्षत के पिता डॉ हिमांशु श्रीवास्तव ने बताया कि 24 मई की रात से अक्षत को बुखार आना शुरू हुआ और हर बीतते पल के साथ उसका बुखार बढ़ता ही जा रहा था। डॉक्टर होने के नाते मैंने अपने जीवन में पहली बार 106 बुखार देखा, वह भी अपने बेटे का। उसी रात हम अक्षत को अपोलोमेडिक्स ले आये। अक्षत की हालत देखकर मैं और उसकी मां काफी डारे हुए थे, लेकिन अपोलोमेडिक्स के स्टाफ ने लगातार हौसला बढ़ाया और उसके इलाज से सम्बन्धित हर जरूरी जानकारी हमें देते रहे।

अक्षत की मां डॉ स्वाति शर्मा ने कहा, “हम लोग बहुत परेशान थे और चिंता बढती जा रही थी कि बीमारी कितनी बढ़ेगी, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होता जा रहा था। अस्पताल में जब बच्चा भर्ती होता है तो वह काफी डरा हुआ होता है, लेकिन तारीफ करनी होगी अपोलोमेडिक्स के डॉक्टर्स और पैरा-मेडिक्स स्टाफ की कि उन्होंने न केवल अक्षत को बेहतरीन इलाज दिया बल्कि प्यार और केयर से उसके मन में बैठे डर को भी दूर किया। यह अपोलोमेडिक्स के डॉक्टरों की मेहनत और ईश्वरीय चमत्कार ही था कि नाउम्मीदी में अक्षत की जान बच गई और उसे एक नया जीवन दान मिला है ।

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