उत्तर प्रदेशलखनऊ

ये मेरा कोठा है यहां सिर्फ मोहब्बत मिलती है भाई-चारे का संदेश दे गया नाटक उमराव जान संत गाडगे प्रेक्षागृह में हुआ नाटक का मंचन

ये मेरा कोठा है यहां सिर्फ मोहब्बत मिलती है भाई-चारे का संदेश दे गया नाटक उमराव जान संत गाडगे प्रेक्षागृह में हुआ नाटक का मंचन

लखनऊ। ‘…ये मेरा कोठा है यहां सिर्फ मोहब्बत मिलती है‘ ये कोई तुम लोगों की जगह या बाजार नहीं जहां तुम लोग आपस में लड़ रहे हो यह डायलाॅग है नाटक उमराव जान का जिसको उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के सहयोग व नवाबीने अवध के तत्वावधान में शुक्रवार को संत गाडगे आॅडिटोरियम में मंचित किया गया। इसका लेखन एस.एन. लाल तो वहीं निर्देशन वामिक खान ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद नवाब एम.एच. कैसर ने दीप प्रज्ज्वलित करते हुए कहा कि यह नाटक हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे को उजागर करता है ऐसे नाटकों का मंचन समय-समय पर होते रहना चाहिए। नाटक में दिखाया गया कि उमराव के कोठे पर नवाबों व अच्छे घरों के बच्चे, उर्दू व तहजीब सीखने आते थे, जिन बच्चों को उमराव बहुत ही मोहब्बत से तालीम देती है कि बड़ों का कैसे एहतिराम करें। नाटक का पैगाम है कि सभी मजहबों-मिल्लत के लोगों को आपस में मजहब के नाम पर लड़ना नहीं चाहिए, बल्कि मोहब्बत से रहना चाहिए। उमराव जान के किरदार में इश्किा अरोरा, खानम कोठे की मालकिन रत्ना ओझा, छुट्न मियां के कोठे का नौकर अरशद खान, फैज अली डाकू वामिक खान, उमराव के आशिक ओम सिंह, दिलावर खान (गुण्डा) मो0 हफीज, ठाकुर प्रताप सिंह मिद्दत खान, हादी रूसवा शायर का किरदार सलीम खान ने निभाया। तो वहीं कलाकार हिमांशु शुक्ला, दिव्यांशी मिश्रा, रिचा तिवारी, वर्तिका दुबे, अनुपम सिंह ने अपने डांस से l का दिल जीत लिया। उमराव जान की कहानी तो वही है कि 13 साल की अमीरन को अगवा करके एक दलाल कोठे पर बेच देता है, कोठे पर जाने के बाद अमीरन से उमराव तवायफ बन जाती है, वहीं उमराव को नवाब सुल्तान से मोहब्बत हो जाती है, इसी बीच उमराव को डाकू फैज अली उठा ले जाते हैं। डाकू फैज अली से किसी तरह बचकर उमराव जान कोठे पर फिर वापस आ जाती है। मगर तवायफ और कोठे की बदनामी की वजह से नवाब सुल्तान उससे शादी नहीं करते हैं। उमराव जान के कोठे पर गाना सुनने और मुजरा देखने दिलावर खान और ठाकुर प्रताप सिंह नामक गुण्डे भी आते थे। लेकिन जब इन्ही गुण्डों को सियासतदानों ने खरीद लिया, तब ये दोनों एक-दूसरे के धर्म के लोगों के खून के प्यासे हो गये। तभी उमराव जान कहती है, ये कोई तुम लोगों की जगह या बाजार नहीं जहां तुम लोग आपस में लड़ रहे हो, ये मेरा कोठा है जहां सिर्फ मोहब्बत मिलती है। ये मोहब्बत तुम लोगो को मस्जिद और मन्दिर में ढंूढ़ना चाहिए, तुम लोगों पर लानत है कि उसी मस्जिद व मन्दिर के नाम पर एक दूसरे का खून बहाते हो। और मोहब्बत तलाश करते हो उमराव के कोठे पर निकल जाओ यहां दोनों, मेरे कोठे को इस नफरत से पाक रहने दो।

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