भारत में लगातार बाल यौन शोषण की घटनाएं बढ़ रही है। 2015-2016 में पास्को एक्ट के तहत बाल यौन शोषण की लगभग 19556 केस दर्ज हुए है। एनडीए सरकार में बाल यौन शोषण की 82 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है।
यह आंकड़े साबित करते है कि ‘‘बेटी बचाओ’’ का नारा खोखला साबित हुआ और यह घटनाएं राष्ट्रीय आपातकाल की तरफ इशारा करती है, एक बालात्कारी किसी की जिंदगी को बर्बाद कर देता है लेकिन कोर्ट मे उसकी सालों सुनवाई होती रहती है और इसी बीच उस एक जान (बेटी) को कई बार उस दर्द से गुजरना पड़ता है। कई बेतुके सवालों से गुजरना पड़ता है और सालों-साल यही सिलसिला चलता रहता है और इन सब के बाद होता क्या है दोषी को सिर्फ कुछ सालों की सजा ये कैसा न्याय है कानून का, ऐसे दरिंदों को तो फाँसी की सजा भी कम है।
ऐसे दरिंदों को तो कानून के हवाले करने से अच्छा है कि बीच चैराहे पर गोली मार दी जाय क्योंकि जब तक कोर्ट के फैसले आएंगे तब तक ना जाने और कितने दरिन्दे कितनी और जिंदगियां बर्बाद कर चुके होंगे और फिर ना जाने कितने केस कितने साल कोर्ट में चलेंगे और ना जाने कितने साल बस यही सिलसिला चलता रहेगा बस सालों साल केस चलेगा फिर दोषी को कुछ सालों की सजा।
अगर कोई किसी की बेटी, बहू, या पत्नी के साथ गलत करें तो हमारे समाज के लोग दोषी को तो कुछ नही कहते लेकिन हॉ जिस बेटी, बहू या पत्नी के साथ गलत हुआ है उसे खरी खोटी सुनाने से नहीं चूकते, उसे ही दोष् देते हैं, कहते हैं जरूर इसी की गलती होगी और अगर कोई एक दोषी के खिलाफ आवाज उठाये तो उसकी आवाज बंद कर दी जाती है। ऐसा क्यों नहीं होता है
कि जो एक आवाज दोषी के खिलाफ उठी है वो एक नही हजारों की तादाद में हो। हमारे समाज में अगर कोई लडकी छोटे कपडे पहनकर निकलती है तो लोग उसे दोषी मानते हैं उसे दोषी की नजरों से देखते हैं उसका तो कोई दोष ही नहीं मानते हैं जो बुरी नजरों से देखता है और गन्दे गन्दे कमेंटस पास करता है।
अगर उसी समय उसकी बुरी नजरों और कमेंटस का जवाब मिल जाये तो शायद ये बुरी नजर उठाने वाले 100-100 बार सोचेंगे। बेटियों ने ऐसे अनेक कीर्तिमान हासिल किए है जिसको ज्यादातर लोगों ने नजरअंदाज ही किया है सुनीता विलियम्स जो चंद्रमा पर सबसे ज्यादा रहने वाली बनी जो 321 दिन 17 घंटे तथा 15 मिनट तक चंद्रमा पर रही वह भी तो एक बेटी है।
बच्चों से जुड़े अब तक अपराध के 106958 मामले दर्ज हुए हैं। यौन हिंसाएं बच्चियों के साथ बढ़ती ही जा रही है। कई केसों में माननीयगण भी बच्चियों के अस्मत से खिलवाड़ किये। दुनिया 21वीं सदी में जा रही है। हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं यह सोचनीय बिन्दु है।
जिस बच्चियों से देश का विकास टिका हुआ है उसी पर अत्याचार यह इंसानियत और मानवता के खिलाफ है। पास्को एक्ट में हर हाल में मृत्यु दण्ड का प्रावधान होना चाहिए।