जन्मदिन विशेष, एक शायर जो दायरों और रवायतों को तोड़कर आवाम के दिलों में बस गया। एक शायर जो शायरी की दुनियाँ का शहंशाह बन गया
अगर आप सोशल मीडिया के सारे प्लेटफॉर्म का बखूबी इस्तेमाल करते हैं तो यकीनन आप इस नाम से अंजान तो बिल्कुल भी नहीं होंगे। कभी किसी नज़्म या मुशायरे का वीडियो, कभी किसी मुद्दे पर की गई फेसबुक पोस्ट, तो कभी किसी मुद्दे पर किया गया कोई आक्रामक सा ट्वीट, इनमें से एकाध चीज़ तो आपकी नजरों के सामने से अक्सर गुज़रती ही होगी और कुछ नहीं तो कम से कम किसी की फेसबुक प्रोफाइल पर बिखरी ज़ुल्फ़ों और काला चश्मा लगी इनकी चॉकलेटी तस्वीर तो देखी होगी आपने। प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव से निकल कर एक दशक के भीतर मुशायरों के मंचों पर अपने नाम का सिक्का चला देने वाला ये नौजवान शायर आज के वक़्त में मुशायरों के साथ-साथ सोशल मीडिया की भी एक बड़ी सनसनी है। कहने को तो ये शायर हैं पर किसी मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह इनकी फेसबुक पोस्ट और ट्वीट सोशल मीडिया पर हर रोज़ धमाल मचा रहे होते हैं। सत्ता के ख़िलाफ़ लिखी गयी इन शायरियाँ और नज़्में राजनैतिक हलकों में धड़ल्ले से इस्तेमाल की जाती हैं।
मुशायरों को ज़ुल्फ़ और आंचल, महबूब और महबूबा, चांदनी और शबनम से निकालकर लखनऊ से दिल्ली तक़ ले जाने वाले इस नौजवान शायर ने अपनी नज़्मों को ज़ुल्म और ज़्यादती के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के लिये बड़े सलीके से इस्तेमाल किया है। पिछले चार सालों में देश का कोई ऐसा बड़ा मुद्दा बाक़ी ना बचा होगा जिस पर इमरान ने कोई नज़्म या चार लाईने ना कही हो। रोहित वेमूला से लेकर नजीब अहमद तक़, माॅबलिंचिंग से लेकर नोटबंदी तक़, JNU से लेकर AMU तक़ और निर्भया से लेकर आसिफ़ा तक़, इमरान ने देश के हर बड़े मुद्दे को अपनी नज़्मों में पिरोकर अपने मंचों पर गाया है और लोगों तक़ पहुँचाया है। हालांकि इस बात को लेकर अक्सर विरोधी उनकी आलोचना भी करते हैं कि वो मुद्दों को मंचों पर भुनाने का काम करते हैं पर बकौल इमरान उन्होंने अपनी शायरी को मज़लूमों की आवाज़ बनाकर उसे घर-घर तक पहुंचाने का काम किया है।
भले ही अदब की दुनियाँ उन्हें अदब का शायर नहीं मानती। भले ही अदब के दिग्गजों की नज़रों में इमरान शायर भी ना हो। भले ही इमरान की नज़्मे अदब की कसौटियों पर ख़री ना उतरती हो पर ये बात भी 100 प्रतिशत सच है की इमरान ने उसी अदबी मंच पर अपनी पहचान बतौर एक कामयाब शायर बनाई है। अदब की उसी महफ़िल से क़तरा-क़तरा करके खुद के लिये चाहतों का एक दरिया समेटा है। अपनी खुद की एक ऑडियंस पैदा की है जिसे अदब की कसौटियों पर ख़रा उतरने वाला नहीं बल्कि उनकी उम्मीदों पर ख़रा उतरने वाला शायर चाहिए था और इमरान उनकी उम्मीदों पर पूरे 24 कैरेट खरे उतरते हैं। इमरान खुद भी अक्सर ये बात स्वीकार करते हैं की वो अदब के शायर नहीं है और ना ही उन्होंने कभी इस कसौटी के हिसाब से खुद को ढालने की कोशिश की है जबकि वो चाहते तो ऐसा कर सकते थे लेकिन उन्होंने जानबूझकर उस रास्ते को चुना जिस पर चलना मुश्किल ज़रूर था पर उस रास्ते पर चलकर लोगों की आवाज़ बना जा सकता था और आज वो अपने आप से संतुष्ट है कि लोगों ने उन्हें उसी रूप में स्वीकारा, सुना और दिल खोलकर प्यार दिया।
इमरान मुशायरों के अलावा आम दिनों में भी बेहद सक्रिय नज़र आते हैं माॅबलिंचिंग के ख़िलाफ़ उन्होंने दो बड़े आंदोलनों की अगुवाई की “ईद विथ ब्लैक बैंड” और “लहू बोल रहा है” के ज़रिये उन्होंने लिंचिंग के ख़िलाफ़ दो सार्थक और गैर राजनैतिक लड़ाई लड़ी। अख़लाक़ से लेकर पहलू, उमर और जुनैद तक़ इमरान हमेशा लिंचिंग पीड़ित परिवारों के साथ खड़े नज़र आये और उन्हें हर संभव मदद पहुँचाने की कोशिश की। भीड़तंत्र को लेकर वो शुरू से ही एकदम मुख़र रहे हैं अपनी फेसबुक पोस्टों, वक़्तव्यों और ट्वीट्स के ज़रिये वो अक्सर भीड़तंत्र के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहते हैं। अपने लगभग हर छोटे बड़े इंटरव्यू में उन्होंने लिंचिंग को लेकर हमेशा खुल कर और एकदम साफ़ लफ्ज़ों में अपनी राय रखी है। वर्तमान में वो मदरसों के बच्चों के लिये राष्ट्र स्तरीय भाषण प्रतियोगिता आयोजित करवाने जा रहे हैं जिसकी चयन प्रक्रिया अलग-अलग राज्यों में जारी है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से उनका उद्देश्य मदरसों के बच्चों के भीतर छिपी अद्भुत प्रतिभा को दुनियाँ को सामने लाकर मदरसों के प्रति लोगों की नकारात्मक सोच को बदलना है।
राजनैतिक पार्टियों के छोटे से लेकर बड़े नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें और सियासी लोगों से उनकी दोस्ती अक्सर चर्चा का विषय रहती हैं। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में इमरान की अच्छी-खासी पैठ है। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी की तरफ़ से उन्हें राज्यसभा भेजे जाने की अटकलें भी ज़ोरो पर थी। नांदेड़ (महाराष्ट्र) म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में धुआं-धार प्रचार किया, गुजरात और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में कई सभाएं की और कमाल की बात ये कि जिन-जिन सीटों पर इमरान प्रचार के लिये गये वो सारी सीटें कांग्रेस के खाते में आई। नांदेड़ म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चुनावों में भी कांग्रेस ने धमाकेदार जीत दर्ज की नौबत ये थी कि ओवैसी बंधुओं की MIM पार्टी के प्रभाव क्षेत्र वाले इस जिले में उसका खाता तक़ नहीं खुल पाया।
इस सब को देखते हुए इमरान की सियासी पारी के कयास भी अक्सर लगाए जाते लहे हैं। राजनैतिक पंडितों का आंकलन है की आने वाले आम चुनावों में इमरान कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर उत्तर प्रदेश की किसी चर्चित लोकसभा सीट से अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। हालांकि राजनीति में आने के विषय में ना तो उन्होंने कभी खुलकर अपना रुख़ स्पष्ट किया है और ना ही कभी इससे इंकार किया है। अभी हाल ही में एक चर्चित न्यूज़ पोर्टल को दिये गये इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि आज के दौर में कोई भी व्यक्ति राजनीति से अछूता नहीं रह सकता और उनके जैसा व्यक्ति तो बिल्कुल भी नहीं उन्होंने आगे कहा कि अभी उनका सियासत में आने का कोई इरादा नहीं है हालांकि कभी इरादा हुआ तो वो अपनी क़ाबिलियत की दम पर राजनीति में भी उसी तरह अपना मुकाम बना लेंगे जिस तरह तमाम दायरों को तोड़कर उन्होंने मुशायरों की दुनियाँ में अपनी जगह बनाई है, आवाम के दिलों में अपनी जगह बनाई है।
हालांकि इमरान के चाहने वालों के साथ-साथ नौजवानों की एक बड़ी जमात उनकी सियासी पारी को लेकर काफी बेचैन नज़र आती है। उसे इमरान की बेबाक़ी, उनके बग़ावती तेवर और उनकी आक्रामकता में एक उम्मीद नज़र आती है कि जो शख़्स अपनी नज़्मों और अपनी आवाज़ के जादू में हज़ारों लोगों को रात भर बांधे रख सकता है, लाखों लोगों को अपना दीवाना बना सकता है, घर-घर तक़ पहुँच सकता है। वो शख़्स अगर उनकी आवाज़ बनकर सियासी गलियारों में गूंजने लग जाए तो यकीनन इसके कुछ अच्छे और सकारात्मक नतीजे सामने आ सकते हैं। और ऐसे भी वो मुसलमानों की मौजूदा सूरत-ए-हाल को लेकर काफ़ी फिक्रमंद नज़र आते हैं। देश के वर्तमान हालात को लेकर उनकी बेचैनी को भी आसानी से महसूस किया जा सकता है।
अब ये देखना दिलचस्प होगा की राजा भैया जैसे बाहुबली नेता के ऐश्वर्य को बौना करके प्रतापगढ़ की रौशन पहचान बन कर देश और दुनियाँ में छा जाने वाले इस सबसे कम उम्र के यश भारती अवार्डी युवा शायर के बगावती तेवरों को तरकश के तीर की तरह इस्तेमाल कर पाने में कौन सी पार्टी कामयाब हो पाती है। हालांकि उनके समर्थक उन्हें राहुल गांधी के साथ देखने में ज़्यादा सहज महसूस करते हैं और इमरान का खुद का झुकाव भी कांग्रेस पार्टी की ही तरफ़ ही ज़्यादा नज़र आता है राहुल और प्रियंका से उनकी नज़दीकी भी इस उम्मीद को और ज़्यादा बल देती है की इमरान भविष्य में कांग्रेस का हाथ थामे राजनीति को एक नई दिशा और दशा देते लाखों नौजवानों का नेतृत्व करते नज़र आएंगे।
लेखक : इस्लाहुद्दीन अंसारी
यह लेखक के अपने विचार है।