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बड़ा सवाल..मुलायम मोदी पर इतने ‘मुलायम’ क्यों…?

कृष्णमोहन झा

लोकसभा चुनाव के लिए उत्तरप्रदेश में गठबंधन कर चुके समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव एवं बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती अब यह खय़ाली पुलाव पकाने ने लग गए है कि उनका गठबंधन राज्य की 80 में से अधिकांश सीटों पर जीत हासिल कर केंद्र में मोदी सरकार की वापसी की संभावनाओं को धूमिल कर देगा। गठबंधन का यह भी मानना है कि केंद्र की आगामी सरकार में सत्ता की चाबी भी उसी के पास रहने वाली है ,परन्तु सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने 16 वी लोकसभा के अंतिम सत्र में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफों के पुल बांधते हुए उन्हें एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने के लिए शुभकामनाएं दी है ,उससे अखिलेश एवं मायावती ही नहीं बल्कि सारा विपक्ष हक्का बक्का रह गया है।
इसमें दो राय नहीं है कि अखिलेश द्वारा सपा अध्यक्ष की बागडौर अपने पिता से छीन लेने के बाद पिता पुत्र के संबंधों में पहले जैसी मधुरता नहीं बची है। यह भी समझा जा सकता है कि वे सपा -बसपा की मैत्री से बिलकुल भी खुश नहीं है ,परन्तु किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस तरह से तारीफ़ कर देंगे एवं चुनाव बाद मोदी सरकार की सत्ता में वापसी की मन्नत भी मान लेंगे । उन्होंने पीएम मोदी को लगातार दूसरी बार केंद्र सरकार का मुखिया बनने की शुभकामनाएं ही नहीं दी बल्कि उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर विपक्ष को इतना बेबस बताने में संकोच नहीं किया कि सारा विपक्ष चाहकर भी इतनी सीटें नहीं ला सकता है, जितनी संख्या में भाजपा ने 16 लोकसभा के चुनावों में जीत हासिल की थी।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जिस समय मुलायम सिंह यादव पीएम मोदी की तारीफों के पुल बांध रहे थे ,उस समय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ठीक उनके बगल में ही बैठी थी, जिनके पुत्र एवं वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल सौदे को लेकर सीधे पीएम मोदी पर हमलावर है। इस बात से ऐसा भी प्रतीत होता है कि मुलायम सिंह यादव पीएम मोदी की तारीफ करने के लिए किसी ऐसे अवसर की ही प्रतीक्षा कर रहे थे ,जब सोनिया गांधी उनके समीप की सीट पर ही बैठी हो।
गौरतलब है कि मुलायम द्वारा मोदी की इस तरह से की गई तारीफ़ के बाद बगल में बैठी सोनिया गांधी  कुछ समय के लिए असहज हो गई थी।  उन्होंने पीछे की सीट पर बैठे विपक्षी सदस्यों की और मुखातिब होकर इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश भी थी। इधर मुलायम सिंह यादव को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और वे मोदी की तारीफ़ करते रहे। इस दौरान विपक्ष तो हक्का बक्का रह गया ,लेकिन सत्ता पक्ष के सदस्यों ने मेजे थपथपाकर इसका जोरदार स्वागत करने में देरी नहीं की ।
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को नजदीक से जानने वाले लोग इस हकीकत से भी अच्छी तरह वाकिफ होंगे की वे इसी  तरह की ही राजनीति करते आए है। राजनीति की चौसर पर वे कब वे कौन सी चाल चल देंगे यह कोई विश्वास के साथ नहीं कह सकता है । दरअसल उनके क्षुब्द होने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि जिस पार्टी की उन्होंने नींव रखी थी, आज उसमे वे ही अलग थलग पड़े हुए है। इतना ही नहीं उनके भाई शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी से बहिष्कृत होकर नई पार्टी तक बनानी पड़ी है।
उनके चचेरे भाई रामगोपाल यादव भी उनसे अलग होकर अपने भतीजे अखिलेश के पक्ष में खड़े हो गए है। शायद इसीलिए वे यह मान चुके है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे चलकर उनके लिए बड़े हितैषी साबित होंगे। उनके इस कदम से यह संकेत भी मिलने लगा है कि लोकसभा चुनाव में उनकी रणनीति क्या होगी। मुलायम सिंह को इस बात की भी परवाह नहीं है कि सपा में उमके जो कटटर समर्थक है ,उन तक इस बदले रुख का क्या सन्देश जाएगा। मुलायम ने तो उन्हें पूरी तरह पसोपेश में डाल दिया है।
 उनके इस कदम से अब यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि वे अपने अनुयायियों को भी यही संदेश देना चाहते है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे सपा ,बसपा गठबंधन के लिए काम करने के बजाए भाजपा को जिताने के लिए काम करे। यहां आश्चर्य की बात यह भी है कि जो मुलायम कभी भाजपा को सांप्रदायिक दल कहते नहीं थकते थे वे आज भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक कैसे बन गए है? क्या यह मान लिया जाए कि बसपा ,सपा की मैत्री से वे इतने क्षुब्द हो गए है कि वे भाजपा एवं मोदी को खुला समर्थन देने में भी संकोच नहीं कर रहे है।
यहां यह सवाल भी उठता है कि मुलायम क्या अब उस समाजवादी पार्टी में विभाजन चाहते है जिसे उन्होंने अपने बल पर खड़ा किया था। अपने इस कदम से मुलायम सिंह यादव ने अब एक तरह से विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहीम में लगे कुछ बड़े विपक्षी नेताओं से न केवल खुद को अलग कर लिया है, बल्कि उन्हें यह संदेश भी दे दिया है कि केंद्र में मोदी सरकार की वापसी को रोकना विपक्षी दलों के बस में नहीं है।
यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है कि मुलायम ने पीएम मोदी की तारिफ कर अपने छोटे भाई शिवपाल यादव की नवगठित पार्टी की चुनावी संभावनाओं की भूमिका बना दी है। अगर उनकी मंशा सचमुच यही है तो आने वाले दिनों में शिवपाल की पार्टी राजग का हिस्सा बन हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

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