ग्राम पंचायतों मे ब्याप्त भ्रष्टाचार पर ध्यान देना हुआ आवश्यक, बिना गोपनीय जांच नही उठेगा पर्दा

रिपोर्ट अंशुमान सिंह
सरकार चाहे तो तमाम जिम्मेदार भी फंसने से बच नही सकते ,लेकिन सरकार भी नही देती ध्यान
सिकायतों के दबे रहने का कारण मिली भगत व सांठ गांठ ग्राम पंचायतों के बारे मे अक्सर उडती हैं अफवाहें जांच हो तभी आ सकता है सच सामने
प्रायः सुनने मे आया करता है कि कहीं सरकार द्वारा लाभार्थियों के आवास मे धांधली की जा रही है तो कहीं स्वच्क्ष भारत मिशन योजना के तहत शौचालयों के बारे मे धांधली हो रही है तो कहीं नाली खडंजा मे धोखाधडी नजर आती है कहीं पीली ईंटों का उपयोग तो कहीं बालू की चुनाई यह सब भ्रष्टाचार नही तो और क्या है।इस तरीके के हो रहे कार्यों पर कहीं कहीं सिकायत होती कहां जहां प्रधान का विरोधी सशक्त होता है वहां किन्तु जहां प्रधान शसक्त होता है वहां किसी की नही चलती यह बात अलग है कि जहां प्रधान व ग्राम विकास अधिकारी का सही ढंग से समझौता नही हो पाता तो वहां जनता व प्रधान दोनो अधिकारी पर चिढे रहते हैं।भ्रष्टाचार की बात किसी एक ग्राम पंचायत की नही बल्कि सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की है प्रदेश मे सायद कोई प्रधान ऐसा होगा जो इस मकड जाल से बचा हो ऐसा भी नही की संसार एक ही तरीके का है।यदि तलास की जाये तो कई ऐसे ग्राम प्रधान मिलेंगे जिनको भ्रष्टाचार से कडी ईर्ष्या भी होगी लेकिन ज्यादा तर संख्या उनकी है जो पूर्ण रुप से भ्रष्टाचार मे लिप्त हैं।और इनका कार्य राम राम जपना पराया माल अपना है जनता गरीब मजबूर मजलूम से इनको कोई मतलब ही नही है।अक्सर ग्राम पंचायत प्रधानों के बारे मे सिकायतें होती रहती हैं किन्तु सिकायतों पर कार्यवाई व अमल बहुत कम होता है।कारण न जाने क्यों सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी इनसे डरते हैं आखिर क्यों इसलिये की कहीं कहीं तो संबंधित साहब ही भ्रष्टाचार मे लिप्त रहते हैं और जब वे प्रधान जी मिल कर खाये हैं तो सिकायती मामले की जांच हो कैसे क्यों कि साहब को भी तो बचना होता है।किन्तु जहां संबंधित अधिकारी ईमानदार होते हैं वहां न कोई सिकायत दबाई जाती है न कार्यवाई ही रोकी जाती है किन्तु ऐसा बहुत कम होता है क्यों कि ईमानदारों की संख्या बहुत कम है।सरकार यदि ग्राम पंचायतों को दिये जाने वाले अपने धन की निगरानी की जिम्मेदारी के लिये यदि कोई गोपनीय विभाग के जांच दल की टीम गठित करदे तो सायद सरकारी धन का दुरुपयोग कम हो।यदि सरकार द्वारा गठित दल प्रत्येक ग्राम पंचायतों का समय समय पर निगरानी करते हुये पाई पाई का हिसाब ले तो तमाम जगहों पर मामला फंसेगा और यदि एक फंसा और सलाखों के पीछे जाने की नौबत आई तो चार और सहम कर ऐसे कार्य की ओर नजर नही करेंगे बात धीरे धीरे बढेगी तो सब जगह सुधरने का प्रयास होगा क्यों कजेल से सभी डरते हैं।एक बात और अभी तक माननीय सांसदों व बिधायकों के प्रतिनिध होते थे और होते हैं किन्तु अब ग्राम प्रधान के भी प्रतिनिध होने लगे हैं सरेआम लोग कहते प्रधान प्रतिनिध फलां।माननीय प्रधान जी को तो सरकार मानदेय देती है लेकिन प्रतिनिध महोदय का कहां से आता है इनका खर्चा कैसे चलता है यह सब एक गूढ सोचनीय विषय है कि प्रधान जी के साथ चलने वाले ब्यक्ति के परिवार का खर्च कहां से पूरा होता है व उसके अन्य नाना प्रकार के खर्च वाले काम कैसे होते हैं जिसमे साक सब्जी से लेकर बच्चों की पढाई आदि के लिये कहां से धन आता है इन सब विषयों पर गहन अध्यन की आवश्यकता है।नाली बनती है तो पीले ईंटों का उपयोग जोडाई मे मानक के अनुसार सीमेंट आदि का प्रयोग नही होता जल्दी से प्लास्टर कराकर ईंटों को ढक दिया जाता है ताकि सच छुपा रहे भट्ठा मालिक तक से ईंटों की खरीद मे मिली भगत चलती है खडंजा तक मे घटिया ईंटों का उपयोग होता है सिकायत भी होती है तो मामला दब जाता है क्यों इस प्रकार के भ्रष्टाचार मे कई लोग शामिल होते हैं अक्सर जन प्रतिनिध ही जन प्रतिनिध के बचाव मे रहते हैं तो कहां से जनमानस को सरकारी धन या सरकारी योजनाओं का लाभ कहां से मिलेगा।प्रत्येक योजनाओं का बंदर बांट होता है किसी प्रकार की कोर कसर नही छोडी जाती।चाहे वृद्धा व विधवा पेंसन हो सरकारी आवास या स्वच्क्ष भारत मिशन का शौचालय।और सभी प्रकार के भ्रष्टाचार बंदर बांट केवल योजना बद्ध तरीके से ही रोका जा सकता है।और सरकार को इस संबंध मे सख्त नियम आदि बनाना आवश्यक है यदि गाथा लिखा जाये तो अभी बहुत कुछ बाकी है।यह लेख एक कटु सत्य है किसी प्रधान व संबंधित अधिकारी से मेरी ब्यक्तिगत दुश्मनी वैमन्ष्यता नही है नाही किसी ब्यक्ति विशेष के प्रति ही ये लेख यह देश समाज के हित मे प्रेषित है सरकारी योजनाओं का लाभ जनमानस के उन लोगों को मिलना चाहिये जो संबंधित योजना के पात्र हैं क्यों कि अक्सर पात्रों के लाभ अपात्रों को दिये जाने की बात आती रहती है।मुझसे ज्यादा विद्वान जानकार देश व समाज मे हैं मै सभी विद्वत जनों से छमा मांगते हुये लेख प्रकाशित कर रहा हूं।यह भी जानता हूं कि ये लेख उनको बहुत अखरेगा जिनके क्रिया कलाप लेख से मिलते जुलते हैं।किन्तु करुं क्या जब ज्यादा अफवाहें पढने सुनने को मिलेीं तो जन समस्या सरकार तक पहुंचाने का मेरे मन मे विचार आया जो साधन सुलभ लगा मैने उसका प्रयोग किया।ग्राम पंचायतों मे भ्रष्टाचार से संबंधित और भी बातें जिनका संबंध कोटेदार से लेकर राशन आदि तो मिड डे मील के माध्यान्ह भोजन के बीच प्रधानाध्यापक व प्रधान तक लेकिन यही इतने मे तो न जाने कितने वैनष्य उपजेंगे जब पूरी गाथा लिखा जाये तो पता क्या क्या हो सकता है।