उत्तर प्रदेशलखनऊ

अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में शुरू हुई पार्किंसन क्लिनिक, गंभीर रोगियों के डीप ब्रेन स्टीम्यूलेशन सर्जरी की मिलेगी सुविधा

अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में शुरू हुई पार्किंसन क्लिनिक, गंभीर रोगियों के डीप ब्रेन स्टीम्यूलेशन सर्जरी की मिलेगी सुविधा

• प्रदेश का पहला हॉस्पिटल जहां पार्किंसन के मरीजों के लिए डीबीएस की सुविधा होगी
• विश्व पार्किंसन दिवस के अवसर पर हॉस्पिटल में पार्किंसन के मरीजों के साथ आयोजित हुआ हेल्थ टॉक

लखनऊ 11 अप्रैल 2022: अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल ने विश्व पार्किंसन दिवस के अवसर पर विशेष पार्किंसन क्लीनिक की शुरुआत की घोषणा की। इसमें पार्किंसन के मरीजों को संपूर्ण इलाज एक ही छत के नीचे मिल जाएगा। विश्व पार्किंसन दिवस के अवसर पर विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा एक हेल्थ टाक का आयोजन किया गया, जिसमें लोगों को पार्किंसन बीमारी के लक्षण और उसके इलाज के बारे में जानकारी दी गई। अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल, निजी क्षेत्र में पहला ऐसा हॉस्पिटल होगा जहां पार्किंसन के मरीजों के लिए डीबीएस (डीप ब्रेन स्टीम्यूलेशन) सर्जिकल ट्रीटमेंट भी शुरू किया जा रहा है।

अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल लखनऊ के एमडी और सीईओ, डॉ. मयंक सोमानी ने कहा, “पार्किंसंस के रोगियों का इलाज प्रारंभिक चरणों में चिकित्सकीय रूप से किया जाता है और बाद में रोगी के ठीक होने पर रिहैब्लिटेशन और फिजियोथेरेपी के बाद सर्जरी की आवश्यकता होती है। अपोलोमेडिक्स लखनऊ अब एक ही छत के नीचे पार्किंसन के लिए हर तरह का इलाज मुहैया कराएगा। उन्होंने बताया कि डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) एक उपकरण को प्रत्यारोपित करने की एक सर्जरी है जो शरीर की गति के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के क्षेत्रों को इलेक्ट्रोनिक संकेत भेजता है। यह सबसे उन्नत सर्जिकल प्रक्रियाओं में से एक है जो पार्किंसंस के रोगियों को बेहतर जीवन जीने में मदद करती है। यह एक बहुत ही जटिल सर्जरी है जिसके लिए न केवल कुशल सर्जन बल्कि अल्ट्रामॉडर्न क्रिटिकल केयर सुविधाओं से संपन्न रेडियोलॉजिकल और एनेस्थेटिक विशषज्ञाें की आवश्यकता होती है। हमें यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि अपोलोमेडिक्स अस्पताल इस क्षेत्र का पहला निजी अस्पताल होगा और भारत में बहुत कम अस्पतालों में से होगा जो डीबीएस सर्जरी प्रदान करता है।

प्रो. यूके मिश्रा, एचओडी न्यूरोसाइंसेज ने कहा, “पार्किंसंस रोग एक मस्तिष्क विकार है जिसमें रोगी को कंपकंपी, जकड़न और चलने में संतुलन और समन्वय में कठिनाई होती है। हालांकि, पार्किंसन किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन यह 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में अधिक देखने को मिलता है।”अपोलोमेडिक्स अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार, डॉ गोपाल पोडुवल ने कहा, “पार्किंसंस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का एक विकार है जिसमें चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है, इसमें अक्सर झटके भी आते हैं। दुनिया में लगभग 10 मिलियन लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और हर साल भारत में इसके कई मामले सामने आते हैं।

इसके साथ ही शाम को अस्पताल परिसर में स्वास्थ्य वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. गोपाल व डॉ. यू.के. मिश्रा ने पार्किंसन रोग के चिकित्सा प्रबंधन के बारे में विस्तार से बताया. वहीं डॉ सुनील कुमार सिंह ने पार्किंसंस रोग के सर्जिकल प्रबंधन के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ‘पार्किंसंस का इलाज उसकी गंभीरता के हिसाब से किया जाता है। सबसे पहले हम इसे दवा से नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं जो शरीर में डोपामाइन और हार्मोन बनाती है। एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन भी दिए जाते हैं। यदि दवाएं काम नहीं करती हैं, तो सर्जरी की जाती है जिसमें मस्तिष्क को डोपामाइन तैयार करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

विभागाध्यक्ष फिजियोथेरेपी डॉ योगेश मांध्यान (पीटी) ने पार्किंसन के रोगियों को विभिन्न प्रकार के फिजियोथेरेपी अभ्यासों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा, “आजकल, पार्किंसन के रोगियों के इलाज के लिए डांस थेरेपी भी बहुत प्रचलित हो गई है जिसके माध्यम से वे थेरेपी करते हुए आनंद ले सकते हैं।

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