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गंदे इशारे करने वाले को मैंने सबक सिखाया : श्रद्धा कपूर

‘आशिकी 2’, ‘एक विलन’ और ‘हैदर’ जैसी बेहद कामयाब फिल्में करने वाली ऐक्ट्रेस श्रद्धा कपूर की ‘ओके जानू’, ‘हसीना’ जैसी पिछली कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाईं। श्रद्धा अब जल्द ही हॉरर कॉमिडी फिल्म ‘स्त्री’ में नजर आने वाली हैं, जिसमें वह औरतों को कमजोर मानने वाले मर्द को दर्द का अहसास कराएंगी। फिजिकल ट्रेनिंग के दौरान पैर में तकलीफ के बावजूद श्रद्धा इस फिल्म के प्रमोशन में जुटी हुई हैं। एक खास मुलाकात के दौरान श्रद्धा ने हमसे फिल्म के अलावा भारतीय समाज में स्त्री की सुरक्षा और चुनौतियों पर भी बात की:

फिल्म इंडस्ट्री में भी हीरो और हिरोइन की फीस में अंतर जैसे कई तरह के भेदभाव देखने को मिलते हैं। आपकी इस पर क्या राय है?
मुझे इतना पता नहीं है कि हीरो को कितनी फीस मिलती है और हिरोइन को कितनी फीस मिलती है। मैं अपने अनुभव के आधार पर कहूं, तो मुझे इंडस्ट्री की अच्छी बात यह लगती है कि आज हिरोइनों को भी इतना काम मिल रहा है। यहां हीरो वाली फिल्में हैं, तो ऐक्ट्रेसेज के लिए भी ऐसे रोल हैं, जिसमें वह अपनी छाप छोड़ सकती हैं। ऐक्ट्रेसेज के लिए हालात पहले से काफी बेहतर हुए हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि आजकल कॉन्टेंट वाली फिल्में चल रही हैं, जो इंडस्ट्री और हम सबके लिए बहुत अच्छा दौर है।

एक अच्छी बात यह भी है कि आज कई बड़ी ऐक्ट्रेसेज बिज़नसवुमन भी हैं। प्रियंका, अनुष्का प्रड्यूसर हैं तो दीपिका, आलिया की क्लोदिंग लाइन है। इस ट्रेंड को आप कैसे देखती हैं? आप भविष्य में ऐसा कुछ करना चाहेंगी?
मुझे लगता है कि यह एक बहुत पर्सनल चॉइस है। अच्छी बात यह है कि आज ऐसे मौके उपलब्ध हैं और यह हो रहा है। मेरा मानना है कि अगर किसी को प्रड्यूसर बनना है, तो उन्हें जरूर बनना चाहिए। यह दूसरों के लिए बहुत इंस्पायरिंग है। मैं अपनी बात करूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं प्रड्यूसर बनना चाहूंगी। क्लोदिंग लाइन का भी कोई इरादा नहीं है। अभी मैं जो ब्रैंड्स मैं इंडॉर्स कर रही हूं, उसमें ही खुश हूं। अभी मैं सिर्फ अच्छे काम करने पर फोकस करना चाहती हूं। अच्छी और यादगार फिल्मों का हिस्सा बनना चाहती हूं।

क्या आपको लगता है कि इतने सालों बाद भी स्त्री के लिए एक सुरक्षित समाज बन पाया है? भारतीय स्त्री के सामने क्या-क्या चुनौतियां देखती हैं?
मुझे लगता है कि अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग मसले हैं। जैसे, कई इलाके कभी-कभी काफी असुरक्षित हो जाते हैं, तो वहां की महिलाओं को ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है। कुछ इलाकों में ज्यादा डर नहीं होता, लेकिन मैं समझती हूं कि पूरे भारत में, स्त्री और पुरुष दोनों ही के लिए, सुरक्षा होनी चाहिए और मुझे उम्मीद है कि ऐसा होगा।

आप मानती हैं कि अभी हमारे समाज में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं? क्योंकि मुंबई, जिसे बेहद सुरक्षित माना जाता है, वहां के आंकड़े कह रहे हैं कि शहर में रोजाना 9 महिलाएं मोलेस्ट हो रही हैं।
मुझे इन आंकड़ों की जानकारी नहीं है, लेकिन मुझे ऐसा बिल्कुल लगता है कि इस दिशा में काफी सुधार हो सकता है। मुझे बिल्कुल लगता है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जब ऐसी खबरें आती हैं, तो बहुत अफसोस होता है और लगता है कि ऐसा न हो, पर उम्मीद पर दुनिया कायम है, तो मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसा न हो। हम सब इसे बेहतर बनाने के लिए भागीदारी कर सकते हैं। स्कूल में सेफ्टी के लिए प्रोग्राम शामिल कर सकते हैं। जागरूकता फैला सकते हैं।

आप मुंबई जैसे बड़े शहर और एक फिल्मी परिवार में पली-बढ़ी हैं। क्या इसके बावजूद, आपको कभी लड़की होने के नाते कोई भेदभाव झेलना पड़ा? 
भेदभाव तो नहीं, पर मुझे याद है जब मैं स्कूल में थी, तो हमारी पिनाफॉर (ट्यूनिक जैसी शॉर्ट ड्रेस) यूनिफॉर्म होती थी। मैं स्कूल से निकलकर घर जाने के लिए अपनी कार की तरफ जा रही थी, तो वहां एक अनजान लड़का घूम रहा था। उसने मुझे देखकर ऐसे मुंह से पुच्च (किस) की आवाज निकाली, तो मैंने उसे खूब लताड़ा और कहा कि दुबारा तुम यहां दिखे, तो मैं तुम्हारी शिकायत कर दूंगी। उसके बाद वह दोबारा वहां नहीं दिखा नहीं। मैं अपने मां-बाप को यह श्रेय देना चाहूंगी कि जब मैं छोटी थी, तभी उन्होंने मुझे यह सिखाया कि अगर कोई आपके साथ शैतानी कर रहा है, तो आपको आवाज उठानी चाहिए।

आपकी पिछली कुछ फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर नहीं चली। इससे आपके इर्द-गिर्द लोगों में नजरिए में कितना बदलाव आया?
यह हिस्सा है हमारे प्रफेशन का। उतार-चढ़ाव तो आना ही है। उसके साथ-साथ लोगों का नजरिया भी बदलता है, लेकिन यह हमारे पेशे का हिस्सा है। मैं खुशकिस्मती यह है कि मेरे पास इतनी सारी अच्छी फिल्में हैं। ‘साहो’ के अलावा मेरे लिए फिल्म ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ भी बहुत खास है। वहीं, साइना नेहवाल की बॉयापिक के लिए अभी ट्रेनिंग चल रही है। उसकी शूटिंग अगले महीने शुरू होगी।

आपकी फिल्म में स्त्री क्या कहना चाहती है?
यह स्त्री लोगों को डराना भी चाहती है। उनका मनोरंजन भी करना चाहती है। यह एक हॉरर कॉमिडी फिल्म है। मैं पहली बार ऐसी फिल्म का हिस्सा बनी हूं। इसमें एक मेसेज भी है, लेकिन उसे भाषण की तरह नहीं दिखाया गया है। इसका कॉन्सेप्ट ही बहुत इंट्रेस्टिंग है। जैसे कहा जाता है कि मर्द को दर्द नहीं होता, तो इस फिल्म में मर्द को दर्द होगा। हमने एक छोटे से शहर चंदेरी में केवल 40 दिनों में यह फिल्म शूट की। वहां फिल्म शूट करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि शहर की भागमभाग से भी एक ब्रेक मिला। मैंने मां, मासी, लता जी, आशा जी, मीना जी और ऊषा जी सबके लिए चंदेरी साड़ियां भी खरीदीं।

 

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